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________________ श्रीभगवती सूत्र [ २४ ] प्रकृति ने इसे कैद कर रक्खा है, मगर यदि प्रकृति के रोकने से यह शरीर में रुका रहता है और कत्ती नहीं है तो उसे मुक्ति कैसे प्राप्त हो सकती है ? इसके अतिरिक्त जड़ प्रकृति को तो कर्त्ता माना जाय और चेतन श्रात्मा को श्रकर्त्ता कहा जाय, यह कहां तक तर्क संगत हो सकता है ! अव यह कहा जा सकता है कि आपके (जैन) मत में आत्मा रूपी है या अरूपी ? रूपी तो आप स्वीकार नहीं करते । अगर रूपी है और ज्ञानवान् भी है तो वह अज्ञान के कार्य क्यों करता है ? इसका उत्तर यह है कि श्रात्मा स्वभाव से अरूपी होते हुए भी प्रकृति के साथ लगा हुआ है। श्रात्मा श्रनादि काल से है और अनादि काल से ही कर्मों के साथ उसका संयोग हो रहा है । कर्मों के साथ एकमेक हो जाने के कारण संसारी आत्मा कथञ्चित् रूपी बना हुआ है और अपने असली स्वरूप को भूल गया है। वास्तव में आत्मा ही कर्त्ता है | वही सव क्रियाएँ करता है श्रात्मा शरीर में रहने वाला देही है और शरीर, देह है । श्रात्मा के दो देह हैं । एक सूक्ष्म, दूसरा स्थूल । स्थूल देह जब छूट जाता है, तव भी सूक्ष्म देह श्रात्मा के साथ वना रहता है। सूक्ष्म शरीर के साथ रहने से ही आत्मा वार-बार जन्म-मरण करता है । जन्म-मरण का यह कारण जंव मिट जाता है तब जन्म-मरण भी मिट जाता है । जन्म-मरण का कारण क्या है, यही वर्णन अव भगवती सूत्र मै आता है। 1 000 ·
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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