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श्री भगवती सूत्र
(४८०) दिशाएँ अलोक में दव जाती हैं तव चार दिशा का और जब एक दिशा अलोक में दब जाती है तब पांच दिशाओं से पाहार लेते हैं। मतलव यह कि जो दिशा अलोक में दब जाती है, उसका आहार नहीं लेते। . पृथ्वीकाय के जीवों के एकमात्र स्पर्शनेन्द्रिय ही होती है। उन्हें रसेन्द्रिय नहीं है । जिसके रसेन्द्रिय है वह उसके द्वारा आहार ग्रहण करके स्वाद लेता है, मगर यह वात इनमें नहीं पाई जाती । इस लिए यह जीव स्पर्शेन्द्रिय से ही श्राहार ग्रहण करके उसका आस्वादन करते हैं। इनका यह स्पर्श भी एक प्रकार का आस्वादन है। - पाँच स्थावरों की स्थिति में अप्काय की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट सात हजार वर्ष की है। अग्निकाय के जीवों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहर्त की और उत्कृष्ट तीन दिन की है। वायुकाय की उत्कृष्ट स्थिति तीन हजार वर्ष की, वनस्पतिकाय की दस हजार वर्ष की और पृथ्वीकाय की वाईस हजार वर्ष की स्थिति है । इस प्रकार इन सब की स्थिति है।
दो इन्द्रिय की स्थिति उत्कृष्ट वारह वर्ष की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है। दो इन्द्रिय वाले जीवों को प्राभोग-आहार की इच्छा असंख्यात समय बाद होती है। असंख्यात समय कितना. लेना चाहिए, यह बताने के लिए अन्तर्मुहूर्त का असंख्यात. समय ग्रहण किया गया है । द्वीन्द्रिय जीवों के आहार का कोई निश्चित नियम नहीं है, अतएव वह विमात्रा . से कहा गया है।