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श्रीभगवती सूत्र
[४ ] फिर प्रश्न होता है कि असुरकुमार के सिवा नौ अवनवासी समान ही हैं, फिर इनके अलग-अलग दंडक क्यों वताये गये हैं। एक ही दंडक क्यों न बता दिया?
जिन भगवान् ने दंडक रूपी प्रान्त बनाये हैं, उन्हें इस विषय में अधिक ज्ञान था । हमें उनकी व्यवस्था पर ही निर्भर रहना चाहिए !
पृथ्वीकाय के जीवों का एक दण्डक है। पृथ्वींकाय के जीवों को यह मालूम नहीं है कि मैं पृथ्वी है। लेकिन भगवान् कहते हैं कि जो खेल सुरकुमारों में हो रहा है, वहीं पृथ्वीकाय के.जीवों में भी हो रहा है । जैन शास्त्रों में जैला अनन्त विज्ञान भरा है, वैसा ज्ञान अन्यत्र देखने में नहीं आता।
भगवान् ने नरक के जीवा, असुरकुमार और पृथ्वीकाय के विषय में ७२ वातें कही हैं। इन जीवों के जितनीजितनी इन्द्रियाँ हैं, उनका वर्णन भी किया गया। भगवान् की करुणा सभी जीवों पर समान है।
संलग्न है इनके बीच में कोई दूसरे त्रस जीव नहीं हैं किन्तु भवनपति देवों में यह बात नहीं है, इनके बीच में व्याघात होने से इनके दंडक प्रथक २ माने है अर्थात् प्रथम नरक के १३ प्रतर और १२. अन्तर है। अन्तर में एक २ जाति के भवनपति रहते हैं और प्रतर में नेरिये रहते है परन्तु प्रथम नरक के नीचे के प्रतर से . सातवी नरक तक बीच में कोई भी नहीं होने से नेरयिकों का एक
और दश, जाति के भवनपतियों के दश दंडक (विभाग )-किये गये है ऐसी. पूर्वाचार्यों की धारणा है।