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________________ श्री भगवती सूत्र (४७२) निर्वर्तित आहार जघन्य दिवसपृथक्त्व के बाद और उत्कृष्ट तेतीस हजार वर्ष बाद होता है । 'चलित कर्म की निर्जरा होती है, इत्यादि शेष सब पूर्ववत् ही समझना चाहिए । व्याख्यान-ऊपर जो विविध प्रकार के जीवों का वर्णन दिया गया है, उसकी कुछ विशेष बातों पर टीकाकार ने प्रकाश डाला है। असुर कुमार की उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम से कुछ अधिक की कही गई है, सो बलि नामक असुरराज की अपेक्षा से है । चमरेन्द्र की आयु एक सागरोपम की ही है और बलिराज का श्रायुष्य, चमरेन्द्र के आयुष्य से कुछ . अधिक है। असुरकुमार का श्वासोच्छ्वास जघन्य सात स्तोक में बतलाया है, किन्तु स्तोक किसे कहते हैं, यह जान लेना आवश्यक है । टीकाकार कहते हैं हदुस्स अणवगल्लस्स निरुवकिट्ठस्स जंतुणो । एगे ऊसास नीसासे. एस. पाणुत्ति वुचइ ।। सत्त पाणुणि से थोचे, सत्त थोवाणि से लवे. । . लवाणं सत्तहत्तरिए, एस मुहुत्ते वियाहिए. ॥ . स्तोक का परिमाण बतलाने के लिए श्वासोच्छवास से प्रारम्भ किया है; पर प्रत्येक जीव का श्वासोच्छ्वास समान कालीन नहीं होता, अतएव शास्त्र में कहा है कि इस गणना में मनुष्य का श्वासोच्छ्वास लेना चाहिए । वह मनुष्य
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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