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द्वीन्द्रिय-वर्णन
___ मूलार्थ-दो-इन्द्रिय जीवों की स्थिति कहकर उन का विमात्रा से-अनियत-श्वासोच्छ्वास कहना चाहिए। ____तत्पश्चात् द्वीन्द्रिय जीव के आहार का प्रश्न होता है कि-भगवन् ! वीन्द्रिय जीव को कितने काल में आहार की अभिलाषा होती है ?
उत्तर-अनाभोगनिर्मित आहार पहले के ही समान समझना चाहिए । जो आभोगनिर्चित आहार है वह द्वीन्द्रिय जीवों का दो प्रकार का है--रोमाहार (रोमों द्वारा खींचा जाने वाला आहार ) और प्रक्षेपाहार ( कौर करकेमुँह में डालकर किया जाने वाला आहार ) जो पुद्गल रोमाहार के रूप में ग्रहण किये जाने हैं, उन सब के सब का आहार होता है; और जो पुद्गल प्रक्षेपाहार के रूप में ग्रहण किये जाते हैं, उनमें से असंख्यातवाँ भाग खाया. जाता है, शेष अनेक हजार भाग विना आखाद के और विना स्पर्श के ही नष्ट हो जाते हैं।
प्रश्न-भगवन्! नहीं आस्वादन किये जाने वाले और नहीं स्पर्श किये जाने वाले पुद्गलों में से कौन किससे अल्प है, बहुत है, तुल्य है या विशेषाधिक है ? अर्थात् जो पुद्गल आस्वाद में नहीं आये, वे अधिक हैं, या जो स्पर्श में नहीं आये थे अधिक हैं ?