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________________ श्रीभगवती सूत्र :: [४०] रीत को श्रचलित कहते हैं । इसी आधार पर गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से प्रश्न किया कि जीव चलित कर्म बाँधता है अथवा प्रचलित कर्म बाँधता है ? भगवान ने उत्तर दिया-जीव प्रचलित कर्म वाँधता है, चलित नहीं । दूसरा प्रश्न है-भगवन् ! नरक के जीव चलित कर्म की उदीरणा करते हैं या अचंलित कर्म की ? इसका उत्तर भगवान् ने यह फरमाया है कि नारकी अचंलित कर्म की उदीरणा करते हैं। - जो कर्म चलित है, वह तो आप ही चलायमान हो रहा है, उसकी उदीरणा क्या होगी ! जो मनुष्य स्वयं जा रही हैं उसको बाहर निकालना ही क्या! ..बाहर तो वही निकाला जायगा जो वैठने की चेष्टा कर रहा हो या वैठो हो। जो वैठा हो.उसे निकालने की चेष्टा करना ही उदीरणा है। अर्थात् कर्मों को उनके जाने के नियत समय से पहले ही भंगा देना उदीरणा कहलाती है। अतएवं उदीरणा अचलितं कम की ही होती है, चलित की नहीं। - तीसरा प्रश्न है-वेदना चलितं कर्म की होती है या श्रचलित कर्म की? इस प्रश्न का उत्तर भी यही है कि अंचलित कर्म की वेदना होती है, चलित कर्म की नहीं। तात्पर्य यह है कि जो कर्म जीव प्रदेश से चलित हो गया है, वह जीव को अपनी फलं देने में समर्थ नहीं हो स. कता। जो जहां स्थित नहीं है, वह वहाँ फल भी उत्पन्न नहीं कर सकता।
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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