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श्री भगवती सूत्र
(४३) आत्मा के साथ पहले का जो तेजस-कार्मण शरीर है, वह सूक्ष्म है । वर्तमान में जो पुद्गल ग्रहण किये जाते हैं, उनका पुद्गल नाम मिटकर तैजस कार्मण नाम हो जाता है। इस सूत्र से यह सिद्ध है कि जीव जहाँ कहीं भी जाता है, तैजस और कार्मण उसके साथ सदैव बने रहते हैं।
तीसरा प्रश्न है -भगवन् ! नारकी जिन कर्मों को वेदते हैं-जिन कमी का फल भोगते हैं, वे कर्म भूतकाल के हैं, या वर्तमान काल के या भविष्य काल के ?
इसके उत्तर में भगवान् ने कहा-गौतम! अतिकाल में ग्रहण किये हुए कर्मों का वेदन होता है। वर्तमान के तथा भविष्य के कर्मों का वेदन नहीं होता। इसी प्रकार निर्जराभी भूतकाल में ग्रहण किये हुए कर्मों की होती है, वर्तमान या भविष्यकालीन कर्मों की नहीं होती । यह चार सूत्र हुए।आगे कर्म-अधिकार से आ सूत्र कहे जाते हैं।
पहला प्रश्न है-भगवन् ! नारकी जीव चलित कर्म बाँधता है या प्रचलित कर्म वाँधता है ?
इस प्रश का उत्तर है-गौतम! नारकी जीव अचलित कर्म का बंध करता है, चलित कर्म का बंध नहीं करता।
___ यहांयह जिज्ञासा हो सकती है किजो अंचलित है, उस का वाँधना क्या? जो गाय बँधी है, वह तो बँधी है ही 'उसका बाँधना क्या? वाँधना तो उसे पड़ता हैं जो छूटी हो इसी प्रकार जो कर्म प्रचलित है-स्थिर हैं, उन्हें क्यायाँधना