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श्री भगवती सूत्र
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लिया। सैकिंडों पर आकर आप रूक गये। लेकिन क्या सैकिंडों के हिस्से नहीं हो सकते ? अवश्य ! मगर श्रापका काम इतने से ही चल जाता है, इस कारणं श्राप श्रागे विभाजन नहीं करते । किन्तु शानियों कोतो एक समय से भी काम है और अपनी दिव्य दृष्टि में वे उस 'समय' को स्पष्ट रूप से देखते भी है । शानियों द्वारा किये गये इस काल-विभाग से हो अनुमान लगाया जा.सकता है कि शास्त्र कितनी सूक्ष्म दृष्टि ले लिखे गये हैं। .
. दूसरी प्रश्न है-भगवन् ! नारकी जिन पुद्गलों को . तैजल-कार्मण शरीर के रूप में ग्रहण करते हैं, उन पुद्गलों की : जो उदीरणा होती है, वह भूतकाल में गृहीत पुद्गलों की ... होती है, या वर्तमान काल में ग्रहण किये जाने वाले पुद्गलों . की या भविष्य में ग्रहण किये जाने वाले पुद्गलों की होती है ? .
इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने फरमाया-गौतम! नारको तैजस कार्मण शरीर के रूप में प्रहण किये हुए जिन .. पुद्गलों की उदारणा करते हैं वे पुद्गल भूतकाल में ग्रहण किये हुए होते हैं, वर्तमान या भविष्य काल में ग्रहण किये . हुए या किये जाने वाले नहीं होते। .. .. - बौद्धं लोग क्षणिकवादी हैं । वे वर्तमान काल में ठहरते.. वाली वस्तु ही मानते हैं, भूत और भविष्य काल में किसी भी पदार्थ का रहना नहीं मानते । जो वर्तमान क्षण में है,: उसका. दूसरे क्षण में समूल नाश हो जाता है। कोई भी पदार्थ वर्तमान के अतिरिक्त किसी भी काल में नहीं रहता। लोकिन जैन शास्त्र ऐसा नहीं मानता। जैन शास्त्र कहता है.कि.अगर .