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________________ श्री भगवती सूत्र (४२०) व्याख्यान-नरक के जीव पुद्गल का माहार करते हैं, यह कहा जा चुका है। अब पुद्गल का अधिकार प्रारंभ होता है । इस अधिकार के अठारह सूत्र कहे गये हैं। श्री गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं-नारकी जीव कितने प्रकार के पुद्गलों को भेदते हैं? सामान्य रुप से पुद्गलों में तीन प्रकार का रस होता है, तीव्र, मध्यम और मन्द । यहाँ भेदने का अर्थ है, इस रस में परिवर्तन करना । जीव अपने उद्वर्तनाकरण (अध्यवसायविशेष ) से मदं रस वाले पुद्गलों को मध्यम रस वाले और मध्यम रस वाले पुद्गलों को तीव्र रस वाले बना डालता है। इसी प्रकार अपवर्तना करण द्वारा तीव्र रस के पुद्गलों को मध्यम रस वाले और मध्यम रस वालों को मंद रस वाले बना सकता है । जीव अपने अध्यवसाय द्वारा ऐसा परिवर्तन करने में समर्थ है, तो क्या नारकी जीव भी ऐसा कर सकते हैं ? क्या वे तीव्र रस वाले पुद्गलों को मन्द-रस के रूप में और मंद-रस को तीव्र रस के रूप में परिणतः कर सकते हैं ? अगर कर सकते हैं तो कितने प्रकार के पुद्गलों को परिणत कर सकते हैं ? अर्थात् भेद सकते हैं ? इस प्रश्न का उत्तर देते दुए भगवान् फरमाते हैं-कर्म द्रव्य वर्गणा की अपेक्षा दो प्रकार के पुद्गलों को नारकीजीव भेद सकते हैं। दो प्रकार के पुद्गल हैं- सूक्ष्म (अणु) और वादर। सामान जाति के द्रव्य के समूह को वर्गणा कहते हैं। - द्रव्य वर्गणा औदारिक आदि द्रव्यों की भी होती है, लेकिन
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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