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________________ (४१६) विभाजनादि-स्वरूप प्रश्न-हे भगवन् ! नारकी जीव कितने प्रकार के पुद्गलों का चय करते हैं ? उत्तर-हे गौतम ! आहारद्रव्य-वर्गणा की अपेक्षा दो प्रकार के पुद्गलों का चय करते हैं । वे इस प्रकार हैं-- अणु और वादर । इसी प्रकार उपचय समझना । प्रश्न-हे भगवन् ! नारकी जीव कितने प्रकार के पुद्गलों की उदीरणा करते हैं ? - उत्तर- गौतम ! कर्मद्रव्य-वर्गणा की अपेक्षा दो प्रकार के पुद्गलों की उदीरणा करते हैं । वह इस प्रकार हैंअणु और बादर । शेष पद भी इस प्रकार कहने चाहिएवेदते हैं, निर्जरा करते हैं, अपवन को प्राप्त हुए, अपवर्तन को प्राप्त हो रहे हैं, अपवर्तन को प्राप्त करेंगे। संक्रमण किया, संक्रमण करते हैं, संक्रमण करेंगे । निधत्त हुए, निधत्त होते हैं, निधत्त होंगे । निकाचित हुए, निकाचित होते हैं, निकाचित होंगे। इन सब पदों में भी कर्मद्रव्य-वर्गणा की अपेक्षा से (अणु और बादर पुद्गलों का कथन करना चाहिए ). गाथार्थ:-भिदे, चय को प्राप्त हुए, उपचय को प्राप्त हुए, उदीरे, वेदे गये, और निर्जीण हुए। अपवर्तन, संक्रमण, निधत्तन, और निकाचन, इन चार पदों में तीनों प्रकार का काल कहना चाहिए।
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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