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________________ श्रीभगवती सूत्र ४१४) काल में जो जीव नरक में हैं और आगेजो नरक में जाएँगे, उन्हें कैसा आहार करना पड़ता है, या करना पड़ेगा, यह भी हमें विदित हो जाता है। तीसरे भंग से यह भी प्रकट हो जाता है कि भूतकाल में तो यह आहार नहीं, किया, मगर भविष्य में करेंगे। उस समय होंगे वे भी करेंगे और नरक में जाएँगे वे भी करेंगे। इस.कथन से नरक का शाश्वतपन सिद्ध किया गया है। . . न भूत में श्राहार किया है, न भविष्य में आहार करेंगे, यह कथन अव्यवहारराशि को सूचित करता है; क्योंकि श्रव्यवहारराशि के जीव उस राशि से न कभी निकले - हैं, न निकलेंगे। चय के पश्चात् उपचय का कथन है ।जो चय किया गया है,उस में और और पुद्गल इकट्ठे कर देना उपचय कहलाता है। जैसे, ईट पर ईट चुनी गई यह सामान्य चुनाई कहलाई और फिर उस पर मिट्टी या चूना आदि का लेप किया गया, यह विशेष चुनाई हुई । इसी प्रकार सामान्य रूप से शरीर का पुष्ट होना चय कहलाता है और विशेष रूप से पुष्ट होना उपचय कहलाता है।.. . कर्म-पुद्गलों का स्वाभाविक रूप से उदय में न श्राकर करण विशेष के द्वारा उदय में श्राना उदीरणा कहलाता है। प्रयोग के द्वारा कर्म का उदय में आना उदीरणा है, इस प्रकार की 'कर्म प्रकृति की साक्षी भी यहां दी.गई है।
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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