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________________ .[४१३] पाहारस्परिणमन . प्राचार्यों ने दोनों बातें लिख दी। इस प्रकार के मतभेद को देखकर शास्त्र में शका मत लाश्रो। यह मतभेद शास्त्र की और शास्त्र के प्रणेता श्राचार्यों की प्रामाणिकता के प्रमाण हैं। उक्त दोनों प्राचार्यों ने किसी एक निर्णय पर पहुंचने का प्रयास किया, लेकिन दोनों छद्मस्थ थे, केवलशानी नहीं। अतएव उन्होंने समभाव से अपनी-अपनी धारणा को सत्य स्वीकार करते हुए भी दूसरे की धारणा को असत्य नहीं ठहराया। ऐसा करके वे हमारे सामने एक उज्ज्वल श्रादर्श छोड़ गये हैं। हमें उनका अनुकरण करके शास्त्र के संवैध में हठवाद से काम नहीं लेना चाहिए और अपने आपको ही सत्यचादी ठहराकर दूसरे को भूठा घोषित करने का साहस नहीं करना चाहिए। जिन पुद्गलों को प्राहार रूप में परिणत किया है, उनका शरीर में एकमेक होकर शरीर को पुष्ट करना चय कहलाता है। चय के परिणमन की ही तरह चार भंग हैं। इन चार भंगों का उचर परिणमन की तरह ही है। - चय और परिणमन के काल में बहुत अन्तर है। पहले परिणमन होता है. उसके बाद चय होता है । इसलिए दोनों चय और परिणमन पृथफ-पृथक हैं। मानी महापुरुषों ने भूतकाल का वर्णन किया, इससे उनकी त्रिकालशता सिद्ध होती है। साथ ही नरक-लोक के प्राणियों के माहार के विषय में हमें जानकारी होती है। वर्तमान
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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