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श्रीभगवती सूत्र
[४१२) वे पुद्गल चय को प्राप्त हुए ? परिणमन के संबंध में जितने और जैसे प्रश्न किये गये हैं, वही सब प्रश्न चय के संबंध में भी समझ लेने चाहिए और उनका उत्तर भीपरिणमन संबंधी उत्तरों के समान ही समझ लेना चाहिए ।
इस प्रकरण में, टीकाकार के कथनानुसार वाचना की भिन्नता देखी जाती है। एक जगह एक प्रकार की याचना है तो दूसरी जगह दूसरी ही वाचना है। वाचना के इस भेद को देखकर शंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि पाठ में भिन्नता होने पर भी अभिधेय-मूल वक्तव्य-सबका समान है। अत. एव पाठान्तर से शंका नहीं वरन् शंका का समाधान होना चाहिए।
संदेह होता है कि दो पाठ परस्पर विरोधी होने से मान्य नहीं होसकते,तवएफ किस पाठको मान्य किया जाय? मगर इसमें संदेह की कोई बात नहीं है। दोनों श्राचार्य जव शास्त्र लिखने के समय एकत्र हुए, तब दोनों को दो तरह की बातें स्मरण में थी, क्योंकि पहले शास्त्र लिखे हुए नहीं थे, कण्ठस्थ ही थे। श्राचार्यों ने अपने २ स्मरण की यात एक दूसरे के सामने रख दी, और कहा किन हम मर्वरा है, न श्राप सर्वक्ष हैं। ध्येय दोनों का एक है । तव दोनों में से किसका स्मरण सही है और किसका नहीं है, यह फैसे कहा जा सकता है ? अतएव दोनों बातें लिखदें । इनमें कौन-सी बात सही है, यह ज्ञानी जानें।
दानों प्राचार्यों को सर्वज्ञ के वचनों पर और अपने 'अपने स्मरण पर विश्वास था । ऐसी स्थिति में अपने स्मरण को गलत मानने का कोई कारण न था। इस कारण दोनों