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________________ [४११] आहार-परिणमन हैं कि जिन पुद्गलों का श्राहार किया जा रहा है और आगे किया जायगा, वे पुद्गल परिणत होंगे। तात्पर्य यह है कि वर्तमान में ग्रहण किये जाने वाले पुद्गल उसी समय शरीर रूप में परिणत नहीं हो सकते । बल्कि चे भविष्य में ही परिणत होंगे। अतएव 'जिन पुद्गलों का आहार किया जा चुका और जिनका आहार किया जा रहा है, वह पुद्गल परिणत हो रहे है, यह कथन युक्ति संगत नहीं मालूम होता। उनके लिए 'परिणत होंगे' ऐसा कहना चाहिए। टीकाकार का यह कथन नय-विशेष की विवक्षा से ठीक ही है। तीसरा प्रश्न भविष्य के संबंध में है । उसका सरल उत्तर यही है कि भविष्य में जिन पुद्गलों का आहार करेंगे, वे पुद्गल भविष्य में परिणत होंगे। चौथा प्रश्न यह था कि जिन पुद्गलों का भूतकाल में आहार नहीं किया और भावष्य में भी श्राहार नहीं किया जायगा, वे पुद्गल क्या शरीर रूप में परिणत हुए? इसका उत्तर यह है कि ऐसे पुद्गल परिणत नहीं होंगे। जिनका ग्रहण ही नहीं हुआ, उनका शरीर रूप में परिणमन भी न होगा। पहले जो ग्रेसठ भंग बतलाए गये हैं, उन सब का इसी आधार पर समाधान समझ लेना चाहिए। . श्राहार किये हुए पुद्गल जय शरीर के भीतर गये तो उनका चय, उपचय भी होगा ही । इसलिए गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं कि 'जीव ने जिन पुद्गलों का आहार किया.
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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