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________________ श्रीभगवती सूत्र [१०] श्राह्रियमाण अनाहत (८) आह्रियमाण अनाहियमाए (६) श्रा. हियमाए अनाहरिप्यमाण (१०) श्राहरिप्यमाए अनाहत (११) आहरिष्यमाण अनाहियमाण (१२) श्राहरिप्यमाए अनाहरिप्यमाण (१३) अनाहुत अनाहियमारण (१४) अनाहत अनाहरियमाण (१५) अनाह्रियमाण अनाहरिष्यमाए । इस प्रकार दो-दो भंगों को मिलाने से पन्द्रह भंग होते है। तीन का संयोग करने पर बील भंग होते हैं और चार संयोगी पन्द्रह भंग होते हैं । इसी तरह पाँच सयोगी छह भंग और छह संयोगी का एक भंग होता है। अतएव एकएक से लेकर छह संयोगी तक के कुल वेसठ भंग होते हैं। मगर संग्रह की अपेक्षा एक ही प्रश्न है। तात्पर्य यह है कि गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से उक्त चार प्रश्न किये । इनके उत्तर में भगवान् ने फरमाया-हे गौतम! जिन पुद्गलों का भूतकाल में आहार किया है वे भूतकाल में ही शरीर रूप परिणत हो चुके हैं। ग्रहण के पश्चात् परिणमन होता ही है; अतएव पूर्वकाल में श्राहार किये हुए पुद्गल पूर्वकाल में ही परिणत हो गये। - दूसरे प्रश्न में भूतकाल के साथ वर्तमान संबंधी प्रश्न किया गया है । उसके उत्तर में भगवान का कथन यह है किजिनका आहार हो चुका वे पुद्गल परिणत हो चुके और जिनका आहार हो रहा है वे परिणत हो रहे हैं।। यहां टीकाकार कहते हैं कि जिन पुद्गलों का आहार किया और जिनका वर्तमान में श्राहार किया जा रहा है, उन. के विषय में कहना चाहिए कि वे पुद्गल परिणत होंगे। मगर यहां कहा गया है कि परिणत हो रहे हैं। सूत्रकार स्वयं कहते
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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