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आहार-परिणमन पूर्वकाल में जिन पुद्गलों का श्राहार किया गया हो या संग्रह किया गया हो उन्हें प्राहृत या श्राहारित कहते हैं।। संग्रह करना और खाना, दोनों ही आहार है।
पुद्गल शब्द से यहाँ पुद्गल-स्कंध समझना चाहिए, परमाणु नहीं। और परिणत होने का अर्थ, शरीर के साथ एकमेक होकर शरीर रूप में होजाना, यहाँ प्रहण करनाचाहिए।
आहार का परिणाम है-शरीर बनना । जो श्राहार शरीर के साथ एकमेक हो जाता है अर्थात् जिस आहार का शरीर बन जाता है, वह पाहार परिणत हुआ या परिणाम को प्राप्त छुपा या परिएमा कहलाता है।
इन प्रश्नों के विषय में प्राचार्य का कथन है कियह काकुपाठ हैं। काकुपाठ वह कहलाता है, जो कण्ठ दबाफर बोला जाय । अर्थात् जिस बात को जोर से तथा आश्चर्य सहित कहा जाता है वह कथन काकु है । यथा-क्या यह ऐसा ही है ?
यह चारों प्रश्न दीखते हैं सीधे-साधे, लोकिन इनमें दार्शनिक श्राशय भरा हुआ है। इन्हीं चार प्रश्नों के ६३ भंग होते हैं । एकसंयोगी के छह भंग है-(१) पूर्वाहत (२ श्राहियमाण (३) आहरिप्यमाण (४) अनाहत (५) अनाहियमाण (६) अनाहरिप्यमाण। इन छह पदों के प्रेसठ भंग होते हैं। प्रत्येक मंग में एक-एक प्रश्न काउद्भव होता है, अतएव प्रेसठ भंग हुए । उनका क्रम इस प्रकार है
(क) (१) पूर्वाहत श्राहियमाण (२) पूर्वाहत आहरिप्यमाण (३) पूर्वाहत अनाहत (2) पूर्वाहत श्रनाहियमाण (५) पूर्षाहत अनाहरिप्यमाण (६) श्राद्वियमाण श्राहरिप्यमाण (७)