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________________ १) था । इन कारणों से प्रस्तुत ग्रन्थ पर खर्च अधिक हुआ है। किन्तु उक्त से लाहवं ने सम्पादन व्यय के अतिरिक्त प्रकाशन में भी आर्थिक सहायता दे कर इसे प्राधे मूल्य में वितरण करवाने की उदारता प्रदर्शित की है। निस्सन्देह श्री गेलड़ाजी की सहायता से ही हम इस आयोजन में इतनी सरलता से सफल हो सके है। अंतएव हम गेलड़ा बंधुओं को अन्तःकरण से धन्यवाद देते हैं। हमारी यह भी हार्दिक इच्छा थी कि ऐसे उदारचित्त सजन का परिचय देने के लिए उनका फोटो पुस्तक में दिया . जाय । परन्तु प्रयत करने पर भी सेठ साहब ने अपना फोटो या ब्लाक भेजने से इन्कार कर दिया है। निष्काम सेवा इसी का नाम है स्वल्प देकर अपना विज्ञापन कराने वालों के लिए सेठ लाहब की भावना वोध पाठ देती है। अन्त में यह प्रकट कर देना भी आवश्यक है कि पूज्य श्री के व्याख्यान तो साधुओं की मर्यादायुक्त भाषा में ही होते थे। प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादन और प्रकाशन में-कहीं किसी प्रकार का विपर्याल हुआ हो,.प्रतिपादन में कोई न्यूनता या अधिकता हुई हो तो उसके लिए सम्पादक और प्रकाशक ही उत्तरदाता.हो लकते हैं। सौजन्यपूर्वक जो सजन किसी त्रुटि की ओर ध्यान आकर्पित करेंगे, हम उनके आभारी होंगे और अगलें संस्करण में यथोचित्त संशोधन करने का ध्यान रखेंगे । इतिशम । बालचन्द श्रीश्रीमाल सेक्रेटरी. हीरालाल नांदेचा प्रकाशक प्रेसिडेन्टेः
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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