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________________ विस्तृत हो गई है कि काउन १६ पेजी साइज के करीब डेड़ हजार से भी अधिक पृष्ठों में इसकी समाप्ति होगी। यह व्याख्या चार भागों में प्रकाशित करने का विचार किया गया है, किन्तु चार भागों में समाप्त न होगी तो पांच करने पड़ेंगे। इन में से प्रथम भाग तो आप की सेवा में करीब छः माह पूर्व प्रेपित कर चूके हैं । यह द्वितीय भाग भी उपस्थित करते हैं। यह व्याख्यान सार संग्रह-पुस्तक माला का २०वां पुष्प है इस मैचलमाणे चलिए के प्रथम सूत्र (प्रश्न )से प्रारम्भ करके प्रथम शतक के द्वितीय उद्देशक तक समाप्त किया गया है। इस से यह पुस्तक करीब सवा चार सौ पृष्ठ की हुई है जो प्रथम भाग से कद में डेंडी है तथा टाइटल का कागज भी वैसा ही जाड़ा है इससे इसकी कीमत रु०१) के बदले रु०१॥) रखनी पड़ी है। जो पुस्तक को देखते हुए यह कीमत ज्यादा नहीं है। श्रीभगवतीसूत्र में प्रथम शतक का वर्णन विशेषतः सूक्ष्म एवं गहन है । उसे समझने और समझाने में विद्वानों को भी कठिनाई होती है। ऐसे गहन भावों को सरलतर कर के पूज्य श्री ने जनसमाज का अकथनीय उपकार किया है। आचार्य श्री की तत्त्व को स्फुट करती हुई किन्तु गम्भीर, सरस और रोचक व्याख्या से साधारण बुद्धि वाला भी लाभ उठा सकता है । इससे तथा श्रीमान् सेठ इन्द्रचन्द्रजी गेलड़ा की उदारता.एवं सेठ ताराचन्दजी सा. की प्रेरणा से प्रेरित होकर यह विशाल आयोजन करने का साहस किया है। जिस समय इस कार्य को प्रारम्भ करने का विचार किया गया, उस समय महायुद्ध की ज्वाला प्रचण्ड हो रही थी। कागज आदि प्रकाशन के सभी साधनों में वेहद मॅहगाई थी। यहां तक कि कागज का मिलना भी कठिन
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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