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________________ [४०३] नारक-वर्णन .. इस कथन की अपेक्षा, आपके हाथ में स्थित दूध को कान या आंख कहा जा सकता है, क्योंकि दूध में और कानआँख में कार्य-कारण भाव संबंध है । यद्यपि दूध में कान या आँख दिखलाई नहीं देती, तथापि कार्यकारण का विचार किया जाय तो उक्त कथन में कोई भ्रम प्रतीत नहीं होगा। इसीलिए गौतम स्वामी पूछते हैं कि नारकी जीवों का आहार किस रूप में परिणत होता है ? अर्थात् नारकी जीवों ने जिन पुद्गलों को आहार रूप में ग्रहण किया है, वे पुद्गल फिर किस रूप में परिणत होते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् फरमाते हैं-हे गौतम ! जिन पुद्गलों को नारकी जीवों ने श्राहार रूप में ग्रहण किया हैं, वे आंख, कान, नाक, जीभ और त्वचा, इस प्रकार पाँचों इन्द्रियों के रूप में परिणत होते है। नारकी जीवों का आहार अशुभ रूप में परिणत होता है, अनिष्ट रूपता प्रकट करता है,कान्त और कमनीय नहीं है। श्रमनोज्ञ है, अमनोगम्य है । इस प्रकार वह श्राहार पश्चात्ताप का कारण है। वह नीची स्थिति में ले जाता है, ऊँची स्थिति में नहीं ले जाता। आहार में दोनों प्रकार की शक्रियाँ हैं-ऊँची स्थिति में ले जाने की भी और नाची स्थिति में ले पटकने की भी। जो आहार स्वाधीन न हो, परतन्त्र हो, जस आहार को ग्रहण करने वाला नरक में ही समझना चाहिए ।
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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