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________________ श्रीभगवती सूत्र [ ४०२ ] चाहिए कि नारकी जीवों ने जो श्राहार किया है, वह किस स्वभाव में, किस प्रकार और किस रूप में परिशत होता है ? कल्पना कीजिए, किसी ने दूध पिया । उस दूध का कहां जायगा ? किस रूप में परियत होगा ? - किसी अत्यन्त क्षुधा पीडित व्यक्ति से देखने, सुनने या सूधने के लिए कहा जाय तो वह उत्तर देगा शुभम शक्ति नहीं है । मेरी इन्द्रियां वेकाम होरही हैं । इसी प्रकार उसे चलने-फिरने के लिए कहा जाय, तब भी वह यही उत्तर देगा । इसके पश्चात् किसी ने उसे दूध पिला दिया । सद्यः शक्तिकरं पयः । दूध तत्काल शक्ति देने वाला है । अतस्य दूध पीते ही उसके सारे शरीर में शक्ति आगई। उस दूध की शक्ति के हिस्से हुए। उन हिस्सों में ले नाक, कान, आँख, हाथ, पैर आदि · को कितना-कितना भाग मिला, यह एक विचारणीय बात है । जो चाहार किया जाता है, उसके पुद्गल मृदु भी होते हैं, स्निग्ध भी होते हैं और कठोर भी होते हैं । लेकिन सब से सूक्ष्म सार आँख खींच लेती है । उसले कम सार वाले क्रमशः कान, नाक, जिह्वा और शरीर खींचते हैं । भारी पुद्गलों को शरीर से कम जिल्ला खींचती है और जीभ से क्रमशः नाक, कान और आंख खींचती है। इस प्रकार आहार के संबंध में कथन किया गया है ।
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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