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नारक-वर्सन
गल ही समझने चाहिए । जो पुद्गल ग्रहण करने के पश्चात् गिर गये हों, उन्हें यहां छोड़ देना चाहिए उनका ग्रहण नहीं करना चाहिए । अगर ऐसा न किया गया तो विरोध श्री जाएगा । जो वचन जिस अपेक्षा से कहा गया हो उसे बसी अपेक्षा से समझना चाहिए ।
कहा भी है
जं जह सुत्त भणियं, तब जइ तं वियालणा नत्थि । कि कालियानुयोगो, दिट्ठो दिद्विप्पहाणेहिं ||
अर्थात् --सूत्र में जो घात जिन शब्दों में कही गई है, अगर शाब्दिक रूप में उसे उसी प्रकार माना जाय और वक्ता की विवक्षा का विचार का ख्याल न किया जाय तो ज्ञानी जन कालिक अनुयोग का उपदेश कैसे करें ?
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श्राजकल साधुओं के ज्ञान में न्यूनता आ गई है, अतएव वह व्या यांच देने में ही सूत्र के व्याख्यान की इतिश्री समझ लेते हैं । मगर सूत्र में नवीन और सूक्ष्म बातें उतनी ही खोजी जा सकती हैं, जितनी खोजने वाले में शक्ति हो । हाँ, शक्ति ही न हो तो बात दूसरी है। जिनकी दृष्टि सूक्ष्म और पैनी है, वे शास्त्र - सागर के भीतर अवगाहन करके श्रनेक महत्वपूर्ण और बहुमूल्य अर्थ रूपी सुक्ता निकालते हैं ।
इसके अनन्तर पूर्वोक्त संग्रह गाथा के ' कीस ' पद की व्याख्या की जाती है। 'फीस' यह एक पद है। इसमें अनेक पदों का उपचार किया जाता है । अतएव यह अर्थ समझना