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________________ [३६] . नारक-वर्णन वही है जो शरीर रूप में परिणत हो । शरीर रूप में परिणत होकर भी पुद्गलों का असंख्यात भाग ठहरेगा और संख्यात भाग नहीं ठहरेगा । पिये हुए एक सेर दूध में से कुछ भाग रस बनेगा और शेष मल बन कर निकल जायगा । शरीर में जो रस वना, वही ऋजु सूत्र नय के अनुसार आहार कहा जा सकता है। • ग्रहण किये हुए पुद्गलों में से उतना ही रस शरीर में खिंचता है, जितनी शकि होती है। कमजोर मनुष्य आहार में से पूरी तरह रस नहीं खींच पाता और उसका श्राहार कच्चे मल के रूप में निकल जाता है । मल के देखने से पता लग जाता है कि आहार में से कितना रस खींचा गया है ? श्राहार करने का जो प्रयोजन है उस प्रयोजन के पूर्ण होने पर ही ग्रहण किये पुद्गल आहार कहलाएँगे। जव तक उनसे श्राहार का प्रयोजन सिद्ध नहीं होता तब तक उन्हें आहार नहीं कहा जा सकता। आहार करने का प्रधान प्रयोजन है-शरीर में,और इन्द्रियों में शक्ति का संचार होना। इस प्रयोजन को जो पुद्गल पूर्ण करते हैं वही आहार हैं। तीसरे प्राचार्य का कथन यह है कि वास्तव में आहार वह है जो शरीर के साथ तद्रूप परिणत हो जाय । जैसे मनुष्य जो आहार करता है, उसमें से अधिकांश खल-मल रूप में बाहर निकल जाता है, वह आहार नहीं कहलाता, उसी प्रकार जो पुद्गल शरीर रूप में परिणत नहीं होते, उन्हें आहार महीं कहा जा सकता। अतएव गृहीत पुद्गलों में से असं .
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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