SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ {३६५] नारक-वर्णन • ऊपर जो संग्रह-गाथा लिखी गई थी, उसके पूर्वार्ध में । विद्यमान 'किं वाऽहारैति' इस पद की व्याख्या यहां तक की गई है। इस पद के आगे 'सव्वश्रो' पद पाया है । अब उसकी व्याल्या की जाती है । टीकाकार के कथनानुसार सव्वो' पद की व्याख्या के लिए निम्न लिखित पाठ का उच्चारण करना आवश्यक है: - नेरइया णं भंते ! सव्वश्रो आहारोंति, सव्वोपरिणामत, सव्वो ऊससंति, सव्वश्रो - नीससंतिः अभिक्खणं आहारोति, अभिक्खणं परिणामेति, अभिक्खणं ऊसंसंति, अभिक्खणं नीससंति, अाहच्च आहारति ? हंता गोयमा ! नेरइया सव्वो श्राहारेति । अर्थ-भगवन् ! नारकी जीव समस्त श्रात्म-प्रदेशों से आहार करते हैं, समस्त प्रात्म-प्रदेशों से परिणमाते हैं, समस्त आत्म-प्रदेशों से उच्छ्वाल लेते हैं, समस्त प्रात्म-प्रदेशों से निःश्वास लेते हैं ? निरन्तर आहार करते हैं, निरन्तर परिणमाते हैं, निरन्तर उच्छ्वास लेते हैं, निरन्तर निःश्वास छोड़ते हैं ? या कदाचित् श्राहार करते हैं ? (कदाचित् परिणमाते हैं, कदाचित् उच्छ्वास लेते हैं और कदाचित् निःश्वास छोड़ते हैं ?)
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy