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________________ श्रीभगवती सूत्र [३६४] प्रकृति से प्रत्येक पदार्थ, दूसरे की ओर खिंचता है, मगर जिसमें वल होता है वह खींच लेता है। गुलिश्तों में एक कहानी है। एक बार बादशाह के हमामखाने में मिट्टी श्राई । उस मिट्टी में खुशबू आ रही थी। पूछताछ करने पर पता लगा कि इस मिट्टीपरसुगंधित फूल खिले थे और वे सूख कर इस पर गिरे। यह खुशबू उन्हीं से आई है। बादशाह ने उन फूलों को भी मँगवाया। उन फूलों में फूलों की ही खुशबू थी, मिट्टी की नहीं थी। - इससे प्रकट हुआ कि मिट्टी ने फूलों की खुशबू खींच ली, लेकिन फूलों ने मिट्टी की गंध अपने में नहीं आने दी। तीर्थंकरों को नरक में भी तीन शुभ लेश्याएँ होती हैं। वे शुभ लेश्याएँ ग्रहण कर शुभ बनते है। यहाँ तक छत्तीस द्वारों का वर्णन हुआ। इनमें नरक के जीवों के आहार का विचार किया गया है। आत्मा में यह शक्ति है कि वह आहार-पुद्गलों को, आहार के योग्य गुण में परिणत कर लेता है। उदाहरणार्थ-दूध यदि पेट में जाकर दूध ही बना रहा तो वह आहार नहीं हुआ। श्राहार वह तब कहलाएगा, जब उसकारस, रक्त, मजाश्रादि बन जाय । इसी प्रकार आत्मा अपने शरीर में श्राहार के लिए पुद्गलों को ग्रहण करता है, फिर उन्हें आहार के रूप में परिणत करता है । आत्मा समस्त आत्मप्रदेशों से आहार करता है, एकही श्रात्मप्रदेश से आहार नहीं करता। जिस आत्मा में जितनी और जैसी शक्ति होगी, वह पुद्गलों को वैसे ही आहार के रूप में परिणत कर सकेगा।
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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