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________________ द्वितीय च जैनकुमारसम्भवकार की जीवन वृत्त, कृतियॉ तथा जैन काव्य साहित्य की तत्कालीन परिस्थितियाँ एवं प्रेरणाएं हुए थे। अनेक जैन विभिन्न राज्यों के महामात्य और महादण्डनायक जैसे पदों पर भी प्रतिष्ठित हुए थे। दक्षिण और पश्चिम भारत के अनेक शिलालेख उनकी अमर गाथाओं को गाते हुए पाये गये हैं। मुश्लिम काल में भी जैन गृहस्थों के कारण जैनाचार्यों की प्रतिष्ठा कायम भी दिल्ली, आगरा और अहमदाबाद के कई जैन परिवारों का, उनके व्यापारिक सम्बन्धों एवं विशाल धनराशि के कारण, मुगल दरवारों में बड़ा प्रभाव था। राजपूत राज्यों में भी अनेक जैन सेनापति और मंत्रियों के महत्त्वपूर्ण पदों पर थे मुगलों से दृढ़तापूर्वक लड़ने वाले राणाप्रताप के समय के भामाशाह, आशाशाह और भारमल आदि प्रसिद्ध है। ईष्ट इण्डिया कम्पनी के समय में जगत्सेठ, सिंधी आदि विशिष्ट परिवार थे जो राजसेठ माने जाते थे और राज्यशासन में उनका बड़ा प्रभाव था। राजकीय प्रतिष्ठा के साथ-साथ इस काल में जैन वैश्य बड़ा ही सुपठित और प्रबुद्ध था। जैनाचार्यों के समान ही वह भी साहित्य सेवा में रत था। इस काल में जैन गृहस्थों ने अनेकों ग्रन्थों की रचना भी की है। अपभ्रंश महाकाव्य पद्मचरित के रचयिता स्वयम्भू, तिलकमञ्जरी जैसे पुष्ट गद्य काव्य के प्रणेता धनपाल, कन्नड चामुण्डरायपुराण के लेखक चामुण्डराय, नरनारायणानन्द महाकाव्य के रचयिता वस्तुपाल, धर्मशर्माभ्युदयकार हरिश्चन्द्र, पंडित आशाधर अर्हद्दास, कवि मंडन आदि अनेक जैन गृहस्थ ही थे। जैनाचार्यों द्वारा अनेक ग्रन्थ प्रणयन कराने, उनकी प्रतियों को लिखाकर वितरण करने तथा अनेक शास्त्र भण्डारों के निर्माण कराने में जैन वैश्य
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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