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________________ द्वितीय परिच्छेट : जैनकुमारसम्भवकार की जीवन वृत्त, कृतियाँ तथा 24 जैन काव्य साहित्य की तत्कालीन परिस्थितियों एवं प्रेरणाएं, और राज्यवंश में विभिन्न धर्मों की एक साथ उपासना होने लगी थी। तांत्रिक धर्म का विस्तार बढ़ने लगा था। हिन्दू धर्म में तांत्रिक धर्म प्रविष्ट हो चुका था। जैनधर्म में वह मंत्रवाद के रूप में प्रविष्ट हो रहा था। तांत्रिक देवी-देवताओं के रूप में चमत्कार-प्रदर्शन के लिए या बाद-विवाद में पराजय के लिए कुछ देवियों- जैसे- ज्वाला, मालिनी, चक्रेश्वरी, पद्मावती आदि का आविष्कार होने लगा था। उनकी स्वतंत्र मूर्तियों व मन्दिरों का निर्माण भी होने लगा था तथा उनके लिए स्रोत्र-पूजाएँ भी रची जाने लगी थी। शैव और वैष्णव धर्मों के प्रभाव के कारण तीर्थकरों को कर्ता-हर्ता मानकर उनके भक्तिपरक स्रोत बनने लगे। जैनाचार्यों ने ऐसे लौकिक धर्मों को भी अपने धर्म में शामिल कर लिया जो धर्म-सम्मत न होते हुए भी लोक में अपना विशेष प्रभाव रखते थे। नाना प्रकार के पर्व तीर्थ, मंत्र आदि का महात्म्य माना जाने लगा और उसके निमित्त नाना प्रकार के कथा-साहित्य लिखे जाने लगे। इस युग में ससंघ तीर्थयात्रा को महत्त्व भी दिया जाने लगा। जैन श्रमण संघ की व्यवस्था में भी अनेकों परिवर्तन होने लगे थे। महावीर निर्वाण के लगभग छ: सौ वर्ष बाद जैन मुनिगण वन-उद्यान और पर्वतोपत्यका का निवास छोड़ ग्रामों नगरों में ठहरना उचित समझने लगे। इसे 'वसति-वास' कहते है। गृहस्थवर्ग जो पहले 'उपासक' नाम से संबोधित होता था वह धीरे-धीरे नियत रूप से धर्मश्रवण करने लगा और अब वह उपासक-उपासिका की जगह श्रावक-श्राविका कहलाने लगा। वसतिवास के
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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