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प्रथम सरियोद: जैनकुमारसम्भव महाकाव्य का महाकाव्यत्व,
के यश का पुनः वर्णन करता हुआ कवि कहता है
स एव देव सगुरुः सतीर्थं, स मङ्गलं सेष सखा स तातः। स प्राणितं स प्रभुरित्युपासा
मासे जनैस्तद्गतसर्वकृत्यैः। प्रभु ऋषभदेव ही देव गुरु, तीर्थ, मङ्गल सखा और पिता हैं, वे प्राणियों के जीवनाधार हैं और उनके आदेशानुसार ही प्राणी अपने समस्त कार्यों को सम्पन्न करते है।
उपयुक्त वर्णनों से स्पष्ट है कि काव्य सौन्दर्य की दृष्टि से जैनकुमारसम्भव एक उत्कृष्ट रचना है और काव्य में अनेक स्थलों पर इसी तरह के काव्य सौन्दर्याधायक सुरूचिपूर्ण वर्णनों से युक्त होकर, अपने पाठकों को बौद्धिक आनन्द देने में समर्थ हैं।
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