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पर प्रभाव" में इस महाकाव्य की रचना कहाँ और कैसे की गयी, इसमें वर्णित कथानक का मूल किन ग्रन्थों से ग्रहण किया गया तथा कथावस्तु का सर्गानुसार संक्षिप्त वर्णन तथा ग्रन्थ लेखन की प्रेरणा इत्यादि का संक्षिप्त वर्णन
चतुर्थ अध्याय “पात्रों का विवेचन" में इस महाकाव्य के नायक ऋषभदेव के चरित्र-चित्रण के साथ नायिका सुमंगला और सुनन्दा के अतिरिक्त
अंगभूत नामक इन्द्र तथा अंगभूत नायिका सची के द्वारा इस महाकाव्य में किये गये योगदान का संक्षिप्त परिचय दिया गया है।
पंचम अध्याय “जैनकुमारसम्भव में रस, छन्द, अलङ्कार, गुण एवं दोष" में मुख्य रूप से शृङ्गार तथा गौण रस के रूप में वात्सल्य, हास्य, भयानक एवं शान्त रस तथा इस महाकाव्य में प्रयुक्त सत्तरह प्रकार के छन्दों का विवेचन, माधुर्य एवं प्रसाद आदि गुणों के सम्पन्नता के साथ-साथ कतिपय दोषों का परिचय दिया गया है।
षष्ठम्र अध्याय "जैनकुमारसम्भव की कलापक्षीय समीक्षा" के अंतर्गत भाषा, भाव, कल्पना एवं परम्परा के आधार पर इस महाकाव्य की समीक्षात्मक विवरण प्रस्तुत किया गया है।
सप्तम अध्याय “जयशेखरसूरि कृत जैनकुमारसम्भव एवं महाकवि कालिदास कृत कुमार सम्भव का तुलनात्मक अध्ययन" के अंतर्गत कथावस्तु, भाषा-शैली, गुण, वृत्ति, रीति, भाव सौन्दर्य, प्रकृति निरूपण, रस, छन्द, अलङ्कार आदि की दृष्टि से दोनों महाकाव्यों का तुलनात्मक समीक्षा संक्षिप्त रूप से किया गया है।