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________________ सप्तम् परिच्छेद : श्री जयशेरवरसूरि कृत जैनकुमारसम्भव एवं महाकवि कालिदास कृत कुमारसम्भव का तुलनात्मक अध्ययन, - भरपाय कालिदास रात्रि की लालिमा में छिटके तारे मनोरम दृश्य उपस्थित करते है। कवि का अनुमान है कि रात्रि की कालिमा शंकर का गज चर्म है, तारे असंख्य अस्थि खण्ड है। जो श्मसान में उनके चारों तरफ बिखरे रहते हैं अभूक्त भूतेशत नो विभूतिं भौती तमोभिः स्फुटतारकौधा। विभिन्न कालच्छविदन्तिदैत्य चर्मावृतेर्भूरि नरास्थिभाजः।। रात्रि वर्णन प्रसंग में जयशेखर ने अनेक कमनीय कल्पनाएं की हैं। उनके कल्पनानुसार रात्रि गौर वर्ण की थी। यह अनाथ साध्वियों को सताने का फल है, कि वह उसके शाप से काली पड़ गयी। निम्नोक्त पद्य में रात्रि के अन्धकार को चकवों की विरहाग्नि का धूआं माना गया है हरिद्रयं यद भिन्ननामा वभूव गौ#व निशातत प्राक्। सन्तापयन्ती तु सतीरना धास्तच्छापदग्धाजनि कालकाया।।६१ यत्कोकयुग्मस्य वियोगवह्नि र्जज्वाल मित्रेऽस्तमिते निशादी। सौद्योतस्वद्योतत्कुलस्फुलिङ्गं दद्धमराजिः किमिदं तमिस्रम्।६२ महाकवि कालिदास ने प्रकृति चित्रण में जिस प्रकार की कल्पनाओं को कुमार-सम्भव में तरलित किया है, वह केवल उनके ही वश की बात हो ।
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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