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________________ सप्तम् मरिच्छेद : श्री जयशेरवरसूरि कृत जैनकुमारसम्भव एवं महाकवि कालिदास कृत कुमारसम्भव का तुलनात्मक अध्ययन प्राम अर्थात् मैं आपके हृदय में निवास करता हूँ यह आप (प्रभु) के योग्य नहीं है। मेरे हृदय में आप (प्रभु) निवास करते है, ऐसा हो ही नहीं सकता, क्योंकि मैं क्षुद्र हृदय वाला हूँ और आप विश्व (नियमों के) कोश है। इस प्रकार द्वय विधि कहने में असमर्थ मुझ पर हे करुणाकर- अर्थात् मुझे अपना समझकर करुणा (दया) कीजिए। इस प्रकार हम कह सकते है कि जैनकुमारसम्भवकार जयशेखर सूरि जी भले ही कुमारसम्भव का अनुकरण करने का प्रयास किये है किन्तु कालिदास के सामने भावाभिव्यक्ति में नन्हें बच्चे के समान परिलक्षित होते हैं। कल्पनाजगत के अन्तरिक्ष में विचरण करने वाले कालिदास की इसी विशेषता के कारण आधुनिक साहित्य समीक्षक कालिदास को 'भारत का शेक्सपीयर' मानते है। काल्पनिक जगत में विचरण करने का उनका आधार निजी कल्पना के साथ-साथ इतिहास-पुराण में वर्णित वस्तु वर्णन को परिवर्तित करने की उनकी अपार काल्पनिक क्षमता है। विश्ववन्ध महाकवि कालिदास जी कुमारसम्भव की कथा शिव-पुराण से ग्रहण किया है किन्तु शिवपुराण में वर्णित कुमार कार्तिकेय जन्म की कथा अपनी कल्पनाओं द्वारा परिवर्तित कुमारसम्भव में जिस प्रकार नियोजित किया है यह उन्हीं के वश की बात थी, क्योंकि इस प्रकार करने को कौन कहे कोई कवि सोच भी नहीं सकता। शिव महापुराण के अन्तर्गत 'कुमारखण्ड' में कुमार कार्तिकेय के जन्म की जो कथा उपन्यस्त है६, उसमें परिवर्तन करते हुए कालिदास कुमारसम्भव में इस प्रकार वर्णित किया है
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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