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________________ सप्तम् स्च्छेिट : श्री जयशेरवरसूरि कृत जैनकुमारसम्भव एवं महाकवि कालिदास कृत कुमारसम्भव का तुलनात्मक अध्ययन/ मान प्राञ्जल है तथा अनेक प्रसंगों में प्रसाद गुण युक्ता वैदर्भी रीति का प्रयोग है विशेषतः पञ्चम सर्ग में। तृतीय सर्ग में इन्द्र-ऋषभदेव संवाद माधुर्य गुणों से युक्त है। जैनकुमारसम्भव की भाषा यद्यपि कहीं-कहीं सहज है किन्तु कहींकहीं वह कठिन हो गयी है यही कालिदास के कुमारसम्भव से अन्तर है कुमारसम्भव में हमें दुरुहता के दर्शन नहीं होते उनकी भाषा केवल प्रसाद गुण युक्त है किन्तु जयशेखर सूरि की भाषा तीनों गुणों से युक्त है। इन्होंने काव्य में कहीं-कहीं दुर्लभ शब्दों का प्रयोग करके तथा लुङ्ग, लिट्, सन्, कानच, ण्मुल आदि प्रत्ययों का प्रयोग करके काव्य को दुरुह बना दिया है। किन्तु इतना होने पर भी जैनकुमारसम्भव में अधिकांशतः माधुर्य की छटा ही दृष्टिगत होती है। इस प्रकार हम कह सकते है कि जयशेखर सूरि का शब्द चयन तथा शब्दों का गुम्फन, उनकी पर्यवेक्षण शक्ति तथा वर्णन कौशल सभी प्रशंसनीय है किन्तु कालिदास के कुमारसम्भव से तुलना करने पर पता चलता है कि यद्यपि दोनों महाकवियों की भाषा प्रौढ़ है तथा दोनों ने ही सुरुचि वर्णनों द्वारा उसे सशक्त एवं उदात्त बनाया है। किन्तु कुमारसम्भव के प्रमाणिक अंश (१ से ९ सर्ग तक) में दोषपूर्ण भाषा परिलक्षित नहीं होती वही जैनकुमारसम्भव में दोषपूर्ण भाषा देशी शब्दों के प्रयोग तथा कहींकहीं भाषा की दुरुहता स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। (ग) भाव सौन्दर्य के आधार पर विचार करने पर ज्ञात होता है कि 'दीपशिखा' कालिदास को मनुष्य के मनोविज्ञान का प्रगाढ़ ज्ञान है मानव हृदय में स्थित भाव एवं इसकी प्रतिक्रिया के विवेचन के
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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