________________
षष्ठ, सिमेन्ट : जैनकुमारसम्मत की कलापदीय समीक्षा
शिष्ये सुखं शेष इवासुरारिः।।२०
और काव्य की नायिका- सुमंगला के गुणों की महिमा का वर्णन निम्न प्रकार से है
गरेण गौरीशगलो मृगेण, गौरद्युतिनीलिकयाम्बुगाङ्गम्। मलेन वासः कलुषत्वमेति,
शीलं तु तस्या न कथंचनापि। अर्थात अपने पति शंकर के गले के विष के कारण कलुषित पार्वती और गन्दे वस्त्रादि के धोने से कलुषित गंगा तुम्हारे शील की समता नहीं कर सकती।
एक और मानवीय पात्रों में दैव-चरित का विधान और दूसरी ओर दैव-चरित की उत्कृष्टता के भावों का अंकन कितना भावोपेत है।
मनुष्य की चित्तवृत्ति का सूक्ष्म चित्रण जयशेखर ने ऋषभदेव द्वारा सुमंगला के गौरवगान के सन्दर्भ में किया है
न कोऽधिकोत्साहमना धनार्जने, जनेषु को वा न हि भोगलोलुपः। कुतः पुनः प्राक्तन पुण्यसम्पदं विना लता वृष्टिमिवेष्टसिद्धयः॥२
अर्थात् धन की प्राप्ति हेतु कौन व्यक्ति उत्साही नही होता? भोग लिप्सा