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________________ षष्ठ, मसिछेद : जैनकुमारसम्भव की कलापक्षीय समीक्षा समर्थ है। भाषा सम्बन्धी उपयुक्त विवेचनों के आधार पर यह निष्कर्ष सहज ही प्राप्त होता है कि इस महाकाव्य की भाषा प्रौढ़ और सुरुचिपूर्ण वर्णनों द्वारा उसे सशक्त एवं उदात्त रूप में वर्णित किया है। किन्तु इसमहाकाव्य में दोष पूर्ण भाषा, देशी शब्दों का प्रयोग एवं कहीं-कहीं भाषा की दुरुहता स्पष्टतः परिलक्षित होता है। (ख) भाव के आधार पर समीक्षा काव्य में भाषा का महत्त्व सर्वातिशायी है, किन्तु भावों के अभाव में भाषा दुरुह एवं कष्ट साध्य हो जाती है। तात्पर्य यह है कि भावाभिव्यक्ति द्वारा भाषा सौन्दर्य को प्राप्त करती है। काव्य में निहित भाव उसकी स्थायी सम्पत्ति है और कवि विभिन्न पात्रों के चरित-चित्रण को भावों द्वारा व्यक्त करता है। मनुष्य की चित्तवृत्ति कैसी होती है? और वह उस अवस्था में क्या करता है? इस विषयों का प्रगाढ़ ज्ञान ही कवि की सफलता का द्योतक है। इस महाकाव्य में निहित भाव-सौन्दर्य- जैनकुमारसम्भव में निहित भावों के प्रकाश में कवि जयशेखर सूरि की भाव प्रवलता निम्न प्रकार से वर्णित है। काव्य के नायक ऋषभदेव विष्णु की तरह अपनी प्रिया के साथ क्रीड़ा करते हुए शयन कर रहे हैं विवाह दीक्षा विधि विद्वधूभ्यां, कृत्वा सखीभ्यामिव नर्मकेलीः। निद्रा प्रियीकृत्य स तत्र तल्पे
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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