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१२४. वही, पृ० १९५
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१२५. वही, ७/१५-२८
दण्डिवामनवाग्भटादिप्रणीता दशकाव्यगुणाः । वयं तु माधुर्योज: प्रसाद लक्षणां स्त्रीनेव गुणान्मन्यामहे ।
शेषास्तेष्वेवान्तर्भवन्ति । काव्यानुशासन, वाग्भट टीका, पृ०-३९
१२६
पञ्चम वृदि : जैनकुमारसम्भव में रस, छन्द, अलङ्कार, गुण एवं दोष
१२७
काव्यालङ्कार- ४/२-७
१२८. वही, ४/८
१२९.
१३०. जै०कु०सं०- ५/६१
१३१. वही, ५/६३
१३२. वही, ५/८१
१३३. वही, ३/५
१३४. वही, ३/७
१३५. वही, ३/२१
१३६. नाट्यशास्त्र - १७/८८
१३७. काव्यालङ्कार, १/३७
१३८. वही, १/४७
१३९. वही, २/३९-४०
१४०. वही, ४/१-२
१४१. काव्यादर्श, ३ / १२५-१२६
१४२. जैनाचार्यों का अलङ्कार शास्त्र में योगदान, पृ० - १४६
काव्यालङ्कारसार- ४/९
१४३.
का०प्र०, पृ० - २६८
१४४. जै०कु०सं०, १/३०
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