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प्रथम-पतिपद : जैनकुमारसम्भव महाकाव्य का महाकाव्यत्व/
अभयकुमार चरितकार तिलकचन्द्र उपाध्याय ने काव्य की परिभाषा इस प्रकार की है
"महाकवे काव्य कृतौ यथा रसौ जल्पे यथा तार्किक चक्रचक्रिणः। तथा क्वचिद्देशश्राम मनोऽस्य भूरुहे काव्ये प्रसन्ने सरसे कर्वेयथा"।।२२
जिन प्रभु सूरि ने भी अपने 'श्रेणिक चरित' में अनेक स्थलों पर काव्य के स्वरूप को व्यक्त किया है उनके अनुसार
पक्वदाडिमवीजानि राजादनफलानि च। रसाढ्याः मृदुमृद्दिकाः काव्यमाला इवोज्जवलाः।। व्यन्जनानि रसादयानि विनिर्माय प्रभूतशः। केऽपि संचस्करुः क्वाऽपि काव्यानि कवयो यथा।।२३
अभूतस्य प्रिया रम्यपदालङ्कार धारिणी। धरिणी नाम हृद्येव सुकवैः काव्य पद्धतिः।। मनोरम पदन्यासा सदङ्गरुचिरा सदा।
नन्याद गीर्विशदश्लोका जिनमूर्तिरिवालमला।। यही काव्य का स्वरूप है। हम्मीर महाकाव्य' के रचयिता नयचन्द्र सूरि की काव्य परिभाषा है
कविता वनितागीति-प्रायो नादो रसप्रदाः।