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प्रथम प्रक्रिकेट : जैनकुमारसम्भव महाकाव्य का महाकाव्यत्व
"शब्दार्थों निर्दोषो सगुणौ प्रायः सालङ्कारौ च काव्यम्" इस प्रकार करके इस सूत्र की वृत्ति में
___“प्रायः सालङ्कारविति निरलङ्कारयोरपि शब्दार्थयोः क्वचित्काव्यत्वख्यापनार्थम्" लिखा है।१९
जैन कवियों ने अपने महाकाव्यों में भी काव्य सम्बन्धी विचारधाराओं को व्यक्त किया है।
'धर्मशर्माभ्युदय' महाकाव्य के रचयिता हरिचन्द्र सूरि की काव्य परिभाषा इस प्रकार है
हृद्यार्थवन्ध्या पदवन्धुराऽपि वाणी बुधानां नमनोधिनेति। न रोचते लोचन वल्लभाऽपि स्तुहीक्षरत्क्षीर सरिन्नरेभ्यः।। जयन्ति ते केऽपि महाकवीनां स्वर्गप्रदेशाइव वाग्विलासाः। पीयूसनिष्यन्दिषु येषु हर्ष केषां न धन्ते सुरसार्थ लीलाम्।।
जिनपाल उपाध्याय ने अपने ‘सनत्कुमार चरित' में भानुमति की कन्याओं का वर्णन करते हुए काव्य के अनिवार्य तत्वों पर प्रकाश डाला है।
उनके अनुसार
जात्याजाम्वूनदालं कृतिप्रोज्जवलाश्चक्रिरेऽङ्गे समस्तेऽपि ता कन्यकाः। सद्रसाः दोषरिक्ता सुशब्दाश्रियः सत्कवेः काव्यवाधो यथा सद्गुणा।।