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पञ्चम मदिरछेद : जैनकुमारसम्मत में रस, छन्द, अलङ्कार, गुण एवं दोष
नामोल्लेखपूर्वक लक्षण प्रस्तुत किये है, किन्तु इन्होंने स्वयं केवल माधुर्यादि तीन गुणों को ही स्वीकार किया है तथा शेष का अन्तर्भाव इन्ही तीन गुणों में माना है।२६ आचार्य भावदेवसूरि ने गुणवर्णन प्रसंग में पहले भरतादि- सम्मत श्लेष, प्रसाद आदि दस गुणों का नामोल्लेख किया है तथा प्रत्येक का लक्षण व संक्षेप में उदाहरण भी प्रस्तुत किया है।२७
इसी क्रम में माधुर्यादि तीन गुणों का भी परैः पद से उल्लेख किया है।२८ जो अन्य मत का द्योतक है। अतः उनके अनुसार दस गुण ही मानना चाहिए। इस प्रसंग में भावदेवसूरि ने शोभा, अभिमान, हेतु, प्रतिषेध, निरूक्त, युक्ति, कार्य और प्रसिद्धि इन आठ काव्य चिन्हों (काव्य लक्षणों) का उल्लेख किया है।२९ जो इस प्रकार है१. शोभा- दोष का निषेध। यथा
जहाँ तुम हो वहाँ कलियुग भी शुभ है। २. अभिमान- वस्तुविषयक ऊहापोह। यथा
यदि वह चन्द्रमा है तो उष्णता कैसे? ३. हेतु- अन्यदेकोक्ति का त्याग हेतु है। यथा
न इन्दुर्नार्कोगुरुहासौं"।
४. प्रतिषेध- निषेध। यथा
तुमने युद्ध से नहीं, भौंह से ही शत्रुओं को जीत लिया।
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