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पञ्चम परिचोद : जैनकुमारसम्भव में रस, छन्द, अलङ्कार, गुण एवं दोष/
शब्दालङ्कार कहलाता है।
जहाँ अन्य कवियों ने काव्य में विद्वता प्रदर्शन के लिए अलङ्कारों के प्रयोग में श्रम किया है जयशेखर सूरि का यमक क्लिष्टता से मुक्त है- सुनन्दा के गुणों के वर्णन में यमक की सरलता उल्लेखनीय है
परांतरिक्षोदकनिष्कलंका, नाम्ना सुनन्दा नयनिष्कलङ्का । तस्मै गुणश्रेणिभिरद्वितीया, प्रमोदपूरं व्यतरद् द्वितीया।।
३. श्लेष अलङ्कार
शब्द और अर्थ भेद से दो प्रकार का होता है।
(i) शब्द श्लेष
वाच्यभेदेन भिन्ना यद् युगपद्भाषणस्पृशः। श्लिष्यन्ति शब्दाः श्लेषोऽसावक्षरादिभिरष्टधा।।३२
अर्थ का भेद होने से भिन्न-भिन्न शब्द एक साथ उच्चारण के कारण जब परस्पर मिलकर एक हो जाते है तब वह श्लेष रूप शब्दालङ्कार होता है और वह अक्षर आदि के भेद से आठ प्रकार का होता है। अर्थात् शब्द श्लेष सभंग तथा अभंग भेद से दो, तथा फिर सभंग के भी आठभेद- स च वर्ण, पद, लिङ्ग भाषा- प्रकृति- प्रत्ययविभक्ति- वचनानां भेदादष्टधा।