SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - पञ्चम : जैनकुमारसम्भव में रस, छन्द, अलङ्कार, गुण एवं दोष अगायतां तुंबरुनारदौ रदोच्छलन्मयूखच्छल दर्शिताशयौ ।। और मालिनी छन्द की योजना छठे सर्ग में इस प्रकार की गयी अथाश्रयं स्वं सपरिच्छदेषु, सर्वेषु यातेषु नरामरेषु । नाथं नवोढं रजनिर्विविक्त, इवेक्षितुं राजवधूरूपागात्।। ४ और उसी सर्ग में इन्द्रवज्रा तथा शिखरिणी छन्द की योजना है जगद्भर्तुर्वाचा प्रथममथ जंभारिवचसा, रसाधिक्यात्तृप्तिं समधिगमितामप्यनुमाम् । स्वरायातैर्भक्ष्यैः शुचिभुवि निवेश्यासनवरे, वलादालीपाली चटुघटनयाऽभोजयदिमाम्।।२५ सूरिः श्री जयशेखरः कविघटाकोटीरहीरच्छवि, धम्मिल्लादिमहाकवित्व कलनाकल्लोलिनीसानुभाक् । बाणीदत्तवरश्चिरं विजयते तेन स्वयं निर्मिते, २६ सर्गे जैनकुमारसम्भवमहाकाव्येयमेकादशः ' इस तरह जैनकुमारसम्भव में उपजाति, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, रथोद्धधता, वंशस्थ, शालिनी, वैश्वदेवी, द्रुतविलम्बित, वसन्ततिलका, मालिनी, पृथ्वी, शिखरिणी, १४०
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy