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चतुर्थ परिच्छेद : पात्रों का विवेचन
नेता विनीतो मेधुरस्त्यागी दक्षः प्रियंवदः रक्तलोकः शुचिर्वाग्भी रुढवंशः स्थिरो युवा। बुद्धयुत्साहस्मृति प्रज्ञा कलामान समन्वितः
शूरो दृढश्च तेजस्वी शास्त्र चक्षुश्च धार्मिकः।। जयशेखसूरि कृत जैनकुमारसम्भव महाकाव्य का नायक धीरोदात्त नायक के गुणों से युक्त है। जैसा कि कवि ने अपने महाकाव्य में नायक के गुणों के विषय में सङ्केत किया है कि उसमें अनिवार्य रूप में दाता कुलीन, मधुरभाषी तेजस्वी, वैभवशाली योगी तथा मोक्षकामी आदि गुणों से युक्त होना चाहिए। काव्य नायक का यह स्वरूप काव्यशास्त्र के नायक स्वरूप विधान से अधिक भिन्न नहीं है साहित्य दर्पण में भी धीरोदात्त नायक का गुण इस प्रकार वर्णित है
अविकत्थनः क्षमावानातिगम्भीरो महासत्त्वं।
स्थेयान्निगूढमानो धीरोदात्तो दृढव्रतः कथितः।।' अर्थात् धीरोदात्त नायक आत्मश्लाधा की भावनाओं से रहित क्षमावान अतिगंभीर, दुःख-सुख में प्रकृतिस्थ, स्वभावतः स्थिर और स्वाभिमानी किन्तु विनीत होता है। जैसा कि जैनकवि ने नायक के गुणों का वर्णन किया है जिसमें अन्तिम दो गुण योगी और मोक्षकामी निवृत्तवादी विचारधारा से प्रेरित है, यही इनकी साहित्यदर्पणकार से भिन्नता भी है। यथा जैनकुमारसम्भव में स्वामी ऋषभदेव गर्भावस्था में ही ऋज्ञान से युक्त है