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________________ तृतीय परिच्छेट : जैनकुमारसम्भव की कथा का मूल, कथा वस्तु तथा उस पर प्रभाव अध्ययन से यह तथ्य भलीभाँति स्पष्ट हो जाता है कि कथानक की परिकल्पना, घटनाओं के संयोजन तथा काव्य रुढ़ियों के अनुपालन में श्री जयशेखर सूरि ने कुमारसम्भव से प्रेरणा या दाय ग्रहण की है। कुमारसम्भव के हृदयग्राही हिमालय वर्णन की तरह ही महाकवि ने जैनकुमारसम्भव का आरम्भ अयोध्या के मनोरम वर्णन से किया है। कालिदास की यथार्थता एवं सरस शैली का अभाव होते हुए भी जयशेखर ने अयोध्या का प्रभावपूर्ण वर्णन किया है।८ कुमारसम्भव और जैनकुमारसम्भव के प्रथम सर्ग में क्रमशः पार्वती तथा ऋषभदेव के जन्म से यौवन तक जीवन के पूर्वार्द्ध का निरूपण है। कुमारसम्भव में पार्वती के सौन्दर्य का यह वर्णन सहजता यथार्थता और मधुरता के कारण संस्कृत काव्यों में प्रतिष्ठित है। जयशेखर द्वारा ऋषभदेव के यौवन का वर्णन, यद्यपि उस स्तर का नहीं है फिर भी रुचिकर है।२९ ।। कुमारसम्भव के दूसरे सर्ग में तारकासुर से पीड़ित देवता उस संकट के निवारणार्थ इन्द्र के नेतृत्व में ब्रह्म . की स्तुति करते है। उसी तरह जैनकुमारसम्भव में इन्द्र, ऋषभदेव को विवाधर्म प्रेरित करने हेतु अयोध्या आते है। कुमारसम्भव के सप्तम सर्ग पार्वती के विवाह-पूर्व की शृंगार वर्णन से जैनकुमारसम्भव में सुमङ्गला के पूर्व का श्रृंगार वर्णन पूर्णतः प्रभावित है।
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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