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________________ तृतीय पहिलोड : जैनकुमारसम्भव की कथा का मूल, कथा वस्तु तथा उस पर प्रभाव नवम् सर्ग में ऋषभदेव द्वारा सुमंगला का गौरव प्रशंसा और स्वप्न फल का विस्तृत वर्णन है। इसी सर्ग में स्वामी द्वारा 'तुम्हें चौदह विद्याओं से युक्त चक्रवर्ती पुत्र की प्राप्ति होगी' का तथा स्वप्न फलों को सुनकर सुमङ्गला के आनन्द विभोर होने का वर्णन है। दशम् सर्ग में सुमङ्गला स्वामी जी की महिमा का वर्णन करती है तदुपरान्त वह अपने वासगृह में आती है। और वह स्वप्न फलों के विषय में अपने सखियों से सविस्तार वर्णन करती है।३ एकादश सर्ग में इन्द्र सुमङ्गला के भाग्य की प्रशंसा करते है। तथा उसे विश्वास दिलाते हैं कि तुम्हारे पति का वचन असत्य नहीं हो सकता।२५ समयानुसार तुम्हें पुत्र-रत्न की प्राप्ति होगी। उस बालक (भरत) के नाम से इस देश का नाम 'भारत' 'वाणी' भारती कहलायेगी।७ अन्ततः मध्याह्न वर्णन के साथ यह महाकाव्य समाप्त होता है। महाकवि जयशेखर सूरि प्राप्त अन्य कृतियों की प्रेरणा श्री जयशेखर सूरि ने जैनकुमारसम्भव की रचना में जिन अन्य कृतियों से प्रेरणा प्राप्त की उनका संक्षिप्त वर्णन निम्नवत् है कुमारसम्भव (महाकवि कालिदास कृत) महाकवि जयशेखर सूरि कालिदास कृत कुमारसम्भव से सर्वाधिक प्रभावित है फलस्वरूप उनके सर्वाधिक ऋणी है। दोनों महाकाव्यों के तुलनात्मक
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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