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________________ श्री यशोविजयजी "तपार्थविवरण" नामनी वृत्ति लखी छे, तेनुं प्रमाण केटलुं छेते आपणी जाण बहार छे. ए ग्रन्थ विषे अन्य कोई ग्रंथमा उल्लेख (साक्षिपाठ) मळतो नथी. एटले ए ग्रन्थ संपूर्ण लखायेल छ के नहि ते विषे कई कही शकातुं नथी, ग्रन्थनो प्रस्तुत भाग उपलब्ध थया पहेला ए ग्रन्थ लेखाएल छे, एटली हकीकतनी पण माहिति नहोती. अत्यारे तो आपणी पासे तपार्थसूचना प्रथम अध्याय उपरनी एमनी टीका छे अने ते पण त्रुटक छ तत्त्वार्थविवरणना शरूआतना पांच श्लोको आपणा पासे नथी. परिणामे पू. श्री शास्त्रवाचस्पति-न्यायविशारदविरुदालंकृत पूज्यपाद आचार्य महाराजश्री विजयउदयसूरीश्वरजी महाराज साहेबे एमनी शास्त्रानुसारी प्रखर विद्वत्ताथी आरंभनो अधुरो भाग रचीने ते त्रुटी दूर करी छे. श्वेतांवर वृत्तिओ सामान्यतः सूत्र अने भाष्य बनेने अनुसरीने रचाई छे. अनेक दिगम्बर विद्वान् आचार्यो! पण तत्वार्थाधिगम सूत्र उपर विवेचनो कर्या छे. श्रीपूज्यपादे " सर्वार्थसिद्धि" श्री भट्ट अकलंके "राजवार्तिक" श्री विद्यानंदिए " श्लोकवार्तिक " अने श्री अमृतचंद्राचार्ये "तत्वार्थसार" नामनी टीकाओ लखी छे. श्री श्रुतसागर, श्री विबुधसेन, श्री.योगीद्रदेव, श्रीयोगदेव, श्री लक्ष्मीदेव अने श्री अभयनंदनसरिए तत्त्वार्थसूत्र उपर व्याख्याओ लखी छे. आ सूत्रनी केटलीक टीकाओ कनडी-कर्णाटकी भाषामां पण लखाई छे, ... श्री तत्वार्थ सूत्रना कर्ता श्री उमास्वाति पाचक . . . अथाग परिश्रम लईने ज्ञाननी अनन्य उपासना करीने जेमणे जैन शासनने अनेक ग्रन्थीनो वारसो आप्योअने श्री सिद्धहमव्याकरणमा "उपोमास्वातिसंग्रहीतार" ए पाक्यथी सर्वश्रेष्ठ संग्रहकार तरीके ओळखावीने जेमनी कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्ये प्रशंसा करी एवा पू.श्री उमास्वातिजीने कोई पणप्रकारनी कीर्तिनी मोह न हतो. स्वजातिने विपे एमणे कशुंज नथी जणाव्यु. परिणामे आपणा एक महान उपकारीना जीवन विषे आपणे लगभ। अज्ञात छीए. तेओश्रीनो जन्म क्यारे थयो ? तेओश्री क्यारे दीक्षित थया? क्यारे तेओश्री काळधर्म पान्या? कथा कथा अगत्यना कार्यो तेओश्रीए जीवनमा काँ? तेओश्रीतुं वर्तुल कयुं हतुं १ तेओश्रीनी विहारभूमि केटली विस्तृत हती विगेरे बावतोथी आपणे अनभिज्ञ छीए. जे कई हकीकतो मळे छे ते चोकस निर्णय उपर आवा माटे पूरती न होईने अनेक अनुमानोने स्थान मळे छे. इच्छीए के वधु संशोधन थाय अने तेओश्रीना जीवन विषे चोकस निर्णय उपर आधी शकीए. तत्त्वार्थ भाव्यना अंते तेओश्रीए लखेली की प्रशारित एमना विषेना आपणा ज्ञाननो आधार छे, एम कहीए तो चाले. तेमना दीक्षागुरु, दक्षिाप्रगुरु, विधायुरू, विद्याप्रगुरु, माता पिताना नाम, गोत्र, जन्मस्थान, ग्रन्थरचना, स्थान अने पदवी.ए बाबतो संबंधी प्रशस्ति आपणने थोडंक कही जाय छे. प्रशस्तिमा जणावाथु छे के :__ "अगीआर अंगना धारक 'घोपनन्दि' नेमना दीक्षागुरु हता, वाचकमुख्य 'शिवश्री' जेसना प्रगुरु हता, वाचकाचार्य 'भूल' जेमना वाचनागुरु हता, अने महावाचक क्षमण
SR No.010492
Book TitleTattvarthadhigama Sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorVijaydarshansuri, Yashovijay
PublisherMotiji Kapurchand Tarachand
Publication Year1955
Total Pages472
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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