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________________ ए ध्येयने अनुकूळ मार्ग पण एमां वताबायो छे. कठोर संयमना मृदु सूरो एमां गुंजी रखा छे.. पद्रव्यनुं स्वरूप एमां विशद रीते सुचवायुं छे. वर्ग अने नारकीर्नु निरूपण एमां सुंदर रीते कर्यु छे. सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्ररूप मोक्षमार्ग उपर एमां ज्वलंत - प्रकाश पथरायो छे. श्री तत्त्वार्थ सूत्रनी महता ए ग्रंथे सोने आकर्ष्या छे. वर्षों पछी अने युगो पछी आजे पण एनी मोहिनी सौने । लागी छे. तत्चार्थनुं ज्ञान मेळयवा अनेक विद्यापिपासुओ तलसी रहे छे. एना ज्ञान विना अभ्यास अधूरो भासे छे. एना आश्रय विना पांडित्य पूरु विकसतुं नथी. अनेक विद्वान् आचार्योए तत्त्वार्थ उपर विस्तृत विवेचना (टीका ) करी छे, ए हकीकत ज ए सूत्रनी अण-. भोलता दर्शावया पूरती छे. श्वेतांबराचार्य रचित होवा छता, जे कृतिने दिगम्बरोए पोतानी मानाने अपनावी छे अने जेनी उपर अनेक विस्तृत टीकाओ रची छे, ते कति सत्य अने निष्पक्षपातथी भारोभार भरी होय एमां नवाई शी ? पांडित्यनुं प्रदर्शन करवा पार्थिव हेतुने सिद्ध करवा के कोईने शिवबा आ ग्रन्थनी रचना नथी थई. मोक्षप्राप्तिना एक मात्र आदर्श ध्येयने पहोंची वळवा अने सौने एनी प्राप्ति हो, ए शुभामिलापाथी प्रेराहने पू. श्री उमारवातिजीएं' "तवार्थाधिगम सूत्र"नी रचना करी छे. एटले तो प्रथम सूत्रमा ज तदन थोडा शब्दोमांज एमणे मोक्षमार्ग दर्शात्री दीधो. सूत्र रचान पू. श्री उमास्वातिजी अटक्या नथी. वरचित सूत्रो उपर सुंदर छणावर तेओश्रीए पोताना ज हाथे "तत्वार्थभाष्य" ग्रन्थ द्वारा करी छे. प्रत्येक सूत्रमा ज्ञाननो ज भंडार भयों छे. तेनी कंईक झाखी तेओश्री "तत्वार्थमाय" द्वारा आपणने करावे छे. तत्वार्थभाष्य. चोप नथी, ए जातनी दिगंबर मान्यता पाया विनानी छे.. सूत्र अने भाप्य उपर अनेक टीकाओ लखाई छे. इतिहासनी अधूराश छे के तत्वार्थमन्त्र उपर फेटली टीकाओ छे ? क्यारे क्यारे ते लखाई छे ? प्रत्येकना का कोण कोण छ । विगेरे धावतो विपे चोकस निर्णय लेवानुं मुश्केल बने छे. प्रवर्तती केली मान्यताओ सत्य होय तो पण आजना शंकाशील युगमा ते ते मान्यताओ उपर शंकाओ उठावपातुं सहेलु बन्युं छे. विद्वानोमा मतभेद प्रवत छे. ए मतभेदनों जेटलो पहेलो अंत आवे एंटलु सा. .. . श्री तरवार्थ सूत्र उपरनी टीकाओ श्री सिद्धसेन नि पूज्य श्री हरिभद्रभूरिजी, पू. श्री यशोभद्रसुरिजी, पू. श्री मलयगिरिजी, तया पू. उपाध्यायजी श्री यशोविजयजीए तत्वार्थवत्र उपर चिओ लखेली छे. पू. श्री हरिभद्रसूरिजीनी वृत्ति मात्र साडापांच अध्याय ३५५ रचाई छ. शेष भाग पू. श्री यशोभद्रसविरजीए तथा तेमना शिष्ये पूर्ण करल छे. पू. आचार्यश्री मलयगिरिजीनी टीका हाल उपलब्ध नथी श्री चिरंतन मुनिए पण तरवार्थ उपर केल्लुक टिप्पण.लखेलं छे. पू. उपाध्यायजी
SR No.010492
Book TitleTattvarthadhigama Sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorVijaydarshansuri, Yashovijay
PublisherMotiji Kapurchand Tarachand
Publication Year1955
Total Pages472
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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