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________________ २८ अनधिगतार्थगन्तृत्वात् प्रमाणस्य । मनननिदिध्यासनयोः श्रवणांगत्वम् । संदेह वारकत्वाच्छास्त्रस्यापि तदंगत्वमिति । कोई, ईश्वर के जगत् कर्तृत्व के विषय में इस "जन्माद्यस्य यतः" सूत्र को संसारी (जीव) से भिन्न ईश्वर के अस्तित्व साधक अनुमान का निरूपक मानते हैं (उनका कथन यह है कि जगज्जन्मादि का कारण होने के कारण परमात्मा जीव से भिन्न है) । जगत रूपी कार्य सावयव, क्रियावान् और मूर्त है, जो कि निश्चित किसी बुद्धिमान की ही रचना है । इस विचित्र जगत का रचयिता कौन बुद्धिमान् हो सकता है, ऐसी आकांक्षा होने पर, जगत के उपादान और उपकरण से अनभिज्ञ जीव तो हो नहीं सकता और जड प्रकृति भी नहीं, इन दोनों से भिन्न परमात्मा ही हो सकता है । निश्चित ही वह जड और जीव से भिन्न है, जगज्जन्मादि से ऐसा ही अनुमान होता है"ब्रह्मस्वरूपं. जीवजडव्यतिरिक्त भवितुमर्हति, जगज्जन्मादि कर्तृत्वात् यन्नवं तन्नवम्" इत्यादि । दूसरे इस सूत्र को श्रुत्यनुवादक मानते हैं, श्रुति के जगज्जन्मादि कारणत्व के प्रदर्शन से कर्ता की सर्वज्ञता सिद्ध होती है अतः ब्रह्म का ही जगत्कत्तुं त्व प्रमाणित होता है, इत्यादि । [ये दोनों ही मत नैयायिकों के हैं पहला कार्यत्वसाधक अनुमान है दूसरा कार्य हेतुक अनुमान है, जो कि विज्ञानेन्द्र भिक्षु का है । ये सर्वज्ञता और शक्तिमत्ता में अनुमान को प्रमाण मानते हैं तथा कर्तृत्व में श्रति को प्रमाण मानते हैं। प्रथम मत में ""जन्माद्यस्य यतः" सूत्र में विषय वाक्य ही नहीं है, केवल लक्षण मात्र है। जिससे ब्रह्म में अनुमान प्रमाण ही सिद्ध होता है, श्रुति का स्पर्श भी नहीं है। दूसरे • मतानुसार “यतो वा इमानि" इत्यादि विषयवाक्य प्रस्तुत है, उसके विना, कर्तृत्व रूप हेतु ज्ञान के प्रभाव से, अनुमिति ही नहीं होती, अतः सूत्र का रहस्य अनुमानोपष्टम्भक ही रहता है, इत्यादि] । । इन दोनों मतों का निरसन करते हैं-"तं त्वौपनिषदं पुरुष पृच्छामि" इत्यादि वाक्य से ब्रह्म एकमात्र उपनिषद्-वेद्य ही सिद्ध होता है; इसलिए उक्त दोनों ही मत उपेक्ष्य हैं । अनुमान प्रमाण अज्ञात अर्थ से संबद्ध होता हैं (श्रुति सिद्ध अर्थ में वह अपेक्षित नहीं है), मनना और निदिध्यासन भी श्रवण के ही अंग हैं तथा संदेह निवारक होने से शास्त्र की श्रवरपांगता स्वाभाविक है । प्रस्तु,
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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