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________________ १२ नित्य है अतः " यतो वा इमानि" इत्यादि सृष्टि प्रतिपादक वाक्य अर्थवाद मात्र ही हैं। क्योंकि - ब्रह्म में कोई वास्तविक धर्मं तो है नहीं, वह तो नित्य शुद्ध बुद्ध उदासीन होने से सदा ही निर्विषय है, स्थूलता आदि निषेध करने वाली श्रुतियाँ उसकी निर्विषयता का प्रमाण हैं । सृष्टि प्रतिपादक वाक्यों में उन्हीं अपवाद विषयों का आरोप किया गया है जो कि केवल उपासना के विषय (ईश्वर) की स्तुति मात्र हैं । प्रत्यक्ष आदि प्रमाण और वस्तु सापेक्ष होने से, विधि, प्रकृति साध्य होती है, इसलिए प्रकृति रहित ( परब्रह्म के लक्षण स्वरूप सत्यं ज्ञानमनंतं ब्रह्म) । ज्ञान प्रादि विधेय नहीं हो सकते । ज्ञान यदि एकदम असाध्य भी नहीं हैं, प्रकार भेद तो प्रयोजन हीन होता है, सभी कारणों में पुरुष का प्रयास होता है। ब्रह्माकार वृत्ति के उत्पादन तथा चक्षु मन आदि प्रमाण रूप ज्ञानेन्द्रियों के निग्रह में पुरुष का प्रयास सापेक्ष होता है, यदि ऐसा न हो तो वेदांत मत के अनुसार विधीयमान मनन निदिध्यासन आदि नियम विफल हो जायेंगे, तथा साधन प्रतिपादक श्रुतियों की विरुद्धता सिद्ध होगी । जो लोग ज्ञान की साधना में कर्मफल के निराकरण की बात करते हैं, उन्हें भी ज्ञान साधन के लिए गुरु के शरणापन्न होकर प्रयास करना ही पड़ता है । जहाँ ("ब्रह्मविदाप्नोति परम्" इत्यादि वाक्यों में) साधन फल मात्र की प्रतीति होती है, विधि की नहीं, वहाँ भी विधि की कल्पना करके उस प्रकरण में स्थित ("सत्य ज्ञानमनंतं ब्रह्म" इत्यादि) वाक्यों की विधिशेषता की कल्पना करनी ही पड़ती है। इस प्रकार उत्तर मीमांसा में धर्म का प्रयोजन ही क्या है ? यदि ऐसा नहीं मानते तो ("नायस्य क्रियार्थत्वादानर्थक्य मतदर्थानाम्" इत्यादि स्मृति के आधार पर उत्तर कांड की अनर्थकता से) विरोध होता है । स्यादेतत् ब्रह्मविचार एवारम्भणीयो न धर्मं विचारः, सर्ववेद व्यासकर्त्रा . वेदव्यासेन कृतत्वात् तुच्छफलत्वाच्च । कल्पोक्तं प्रकारेण निःसदिग्धं करणसंभवाच्च । आचारपरम्परयाऽपि करणसंभवाच्च । एतहि अपि संदेहे सूत्रभाष्य याज्ञिकानामेवानुकृतिः क्रियते, न मीमांसकस्य, तस्मात् सांगवेदाध्येनिःसंदेह करण संभवात्र पूर्वयाऽपि कृत्यम् । किं च परम कृपालुर्वेदः संसारिणः संसारान्मोचयितुं कर्माणि चित्तशुद्ध्यर्थं बोषितवानिति कूपेऽन्धपातनवदप्रामाणिकत्व भियावसीयते । विपरीत बोधिका तु पूर्वमीमांसा तस्मादपि न कर्त्तव्येति ।
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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