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________________ किं च अध्याहारश्च कर्त्तव्यः, स च कर्तव्यादिपदानाम्, यदि तत्स्वार्थ, व्यर्थमेव वाक्यं स्यात्, परार्थत्वे त्वशक्यम्, न हि तैर्विचारः कर्तुं शक्यते, स्वकृति वैययं च, असंगतिश्चास्य सूत्रस्य भवेत् । किं चाधिकारपक्षे पुरुषार्थः सिद्ध्यति, नानंतर्यपक्षे, उक्तन्यायात् । किं च तादृशरयाधिकारिणः श्रवणमात्रेण कृतार्थस्य समाधिनिरतस्य प्रवचनासंभवाच्छास्त्रोच्छेदः, शास्त्र विरोधश्च, साधनानामने स्वयमेव वक्तव्यत्वात् । अतोऽनेक दोषदुष्टत्वादधिकारार्थ एव श्रेयान् । अथ शब्द का प्रानंतर्य अर्थ मानने में अधिकाकांक्षा, अध्याहारापत्ति, पुरुषार्थासिद्धि और विचारोच्छेद प्रादि चार दोष दिखलाये गये, अधिकाकांक्षा का निरूपण ऊपर कर चुके, अब अध्याहार का निरूपण करते हैं प्रानन्तर्य अर्थ में अथ शब्द से कर्तव्य आदि पदों का अध्याहार आवश्यक है, यदि वह अध्याहार स्वार्थ में है तो वाक्य ही व्यर्थ हो जायगा, परार्थ में किया नहीं जा सकता, क्यों कि अल्पज्ञ लोग ब्रह्म सम्बन्धी विचार में समर्थ नहीं हो सकते । यदि ब्रह्म तत्त्व को सामान्यतः ज्ञेय मान लें तो भगवान व्यास देव की कृति ही व्यर्थ हो जायगी, तथा स्व-पर के झमेले में "अथाऽतो" इत्यादि सूत्र की उपयोगिता ही समाप्त हो जायगी, अतएव वह असंगत हो जायगा। ___ अधिकार पक्ष में ही पुरुषार्थ सिद्धि होती है, आनंतर्य पक्ष में नहीं, उपर्युक्त विवेचन' से यही सिद्ध होता है । यदि साधन चतुष्टय के बाद ही वेदांत विचार की बात होती तो, श्रवणमात्र से ही कृतार्थ व्यक्ति को समाधि के विना ही साक्षात्कार हो जाता, वेदांत विचार के लिए किये गये प्रवचन की उपयोगिता ही समाप्त हो जाती, प्रवचन विधायक शास्त्रों के अध्ययन अध्यापन की परंपरा का ही उच्छेद हो जाता । साधन के विना केवल श्रवणमात्र से साक्षात्कार की बात शास्त्र सम्मत नहीं है, यदि साधन विना ही साक्षात्कार संभव होता तो भगवान बादरायण स्वयं साधनों का वर्णन न करते । इस प्रकार प्रानंतर्य अर्थ अनेक प्रकार से दूषित है, अधिकार अर्थ मानना ही श्रेष्ठ है । न च ज्ञातुमिच्छा जिज्ञासा, नाधिकर्तुं शक्येति वाच्यम्, जिज्ञासा पदस्य विचारार्थत्वात् । अत एव जिज्ञासितुमिच्छेदिति पुराविदां वचनानि, जिज्ञासा
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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