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________________ अर्थज्ञान आवश्यक नहीं है, तथा अविचारित शब्द अर्थबोधक नहीं होता, ऐसा नहीं कह सकते । शब्द ज्ञ'य है, "वैदिक ऋचाओं को गाकर, शीघ्रता से, सिर कंपाते हुए या लिखकर, अर्थ ज्ञान के बिना, अल्पकंठ से पाठ करने बाले अधम पाठक हैं." इत्यादि बाधक नियम भी है। शब्द, नेत्र आदि की तरह संदिग्ध अर्थ का बोधक नहीं होता, उसका अर्थ तो व्याकरण आदि से निश्चित होता है। यह नियम लौकिक शब्द और वैदिक शब्द दोनों में समान है। इस नियम के विरुद्ध, शब्दार्थ का निर्णय नहीं किया जा सकता, यदि करेंगे तो वह अप्रामाणिक होगा। इसलिए वेदार्थ ज्ञान के विचार की बात असंगत है (वह तो नियम सिद्ध विषय है)। स्यादेतत्, न वेदार्थ ज्ञानमात्राय विचारः, किन्तु ब्रह्मज्ञानाय, तस्य चात्मरूपत्वात् तस्य चाविद्यावच्छिन्नत्वाद् देहात्मभाव दृढप्रतीतेस्तदति रिक्तस्य ब्रह्मणोऽभावान्न वेदमात्रादसंभावना विपरीत भावना निवर्तक ज्ञानमुपद्यते, प्रत्युत देहात्मभाव दृढप्रतीतेः श्र तेरुपचरितार्थत्वं स्तुतित्वं वा कल्पयिष्यतीति । उक्त कथन ठीक हो सकता है, पर वेद के अर्थ ज्ञान मात्र के लिए विचार भले ही न किया जाय किन्तु ब्रह्म ज्ञान के लिए तो विचार आवश्यक है। ब्रह्म का स्वरूप अनिर्वचनीय तथा मायातीत है । वेद के अर्थ ज्ञान मात्र से देहात्मभाव की दृढ़ प्रतीति की भावना के विपरीत, निवर्तक ज्ञान का होना संभव नहीं है, अपितु देहात्मभाव की दृढ़ प्रतीति, श्रति की उपचरितार्थता और स्तुति आदि की ही कल्पना हो सकती है। मेवम्, “अलौकिको हि वेदाथों न युक्त या प्रतिपद्यते । तपसा वेद युक्त या तु प्रसादात् परमात्मनः ॥" न हि स्वबुद्ध्या वेदार्थं परिकल्प्य तदर्थ विचारः कर्तुं शक्यः । ब्रह्म पुनर्यादृशं वेदांतेष्ववगतं तादृशमेव मंतव्यम्, अणुमात्रान्यथाकल्पनेऽपि दोषः स्यात्-“योऽन्यण संतमात्मानमन्यथा प्रतिपद्यते । किं तेन न कृतं पापं चौरेणात्मापहारिणा ॥" नैषा तर्केण मतिरापनेया इति श्र तेश्च । न.च विरुद्ध वाक्यानां श्रवणात् तन्निर्धारार्थ विचारः, उभयोरपि प्रामारिणकत्वेतकतरनिर्धारणस्याशक्यत्वात् । अचिन्त्यानंतशक्तिमति सर्वभवन समर्षे ब्रह्मणि विरोधाभावाच्च । : :: उक्त कथन असंगत है, क्योंकि-"वेद का अर्थ अलौकिक होता है, युक्ति द्वारा उसका प्रतिपादन नहीं हो सकता, तप द्वारा, परमात्मा की कृपा
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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