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________________ ( ५२४ ) आपति में अभक्ष्य करने से चित्त अशुद्ध नहीं होता अतः उससे होने वाला प्रतिबन्ध भी नहीं होता, अतः आपत्ति में कदन्न भक्षण में कोई दोष नहीं है। अपिस्मर्यते ।३।४।२६॥ आपद्यविदुषोऽपि दुष्टान्न भक्षणे पापाभावो यत्र स्मर्यते तत्र विदुषि श्रुत्यनुमते का शंका इत्यर्थः । स्मृतिस्तु-"जीवितात्ययमापन्नो योऽन्नमत्तियतस्ततः, लिप्यते न स पापेन षद्मपत्रमिवाम्भसा" इति । अथवा विदुषो दुष्टकर्मासंबंधो"ज्ञानाग्नि सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुतेतथा" इति स्मर्यतेऽपीत्यर्थः। जब कि आपत्ति में अज्ञानी को कदन्न भक्षण करने में पाप का अभाव म्मृति में बतलावा गया है तब ज्ञानी के लिए श्रुति की अनुमति होने पर शंका करने की क्या आवश्यकता है। स्मृति का कथन है कि-"जब जीवन के समाप्त होने की स्थिति आ जाय तब जहाँ से भी जैसे भोजन के लिए अन्न प्राप्त करने से पाप से वैसे ही लिप्त नहीं होती जैसे कि कमल का पत्र जल से लिप्त नहीं होता।" ज्ञानी का तो दुष्ट कर्म से संबंध भी नहीं होता जैसा कि"ज्ञानी लोग ज्ञ नाग्नि से समस्त कर्मों को भस्मसात् कर देते हैं" इत्यादि स्मृति से निश्चेत होता है। शब्दश्चातोऽकामकारे ।३।४॥३०॥ ___ यतो ज्ञानाग्निरेव सर्वकर्मदहन समर्थ इति फल दशायां कामकारेऽपि न दोषोऽत एब साधन दशायां तदभावेन "तस्मादेवं विच्छान्तोदान्त उपरतिस्तिक्षुः" इत्यादि रूपः शब्दः कामकारनिवर्त्तकः श्रूयत इत्यर्थः। ज्ञानाग्नि से ही ज्ञानी लोग समस्त कर्मों को भस्म करने में समर्थ हैं, ज्ञान प्राप्त कर लेने पर स्वेच्छाचार करने पर भी उन्हें दोष नहीं होता, साधनदशा में तो उनमें कर्म भस्म करने का सामर्थ्य रहता नहीं "तस्मादेवंविच्छान्तोदान्त" इत्यादि रूप शब्द, उस अवस्था में स्वेच्छाचारिता के निवर्तक हैं। एवं ज्ञानस्य कर्मनाशकत्वे सिद्ध जातज्ञानस्याश्रमकर्म कतयं न वेति चिन्त्यते । तत्र फलस्य जातत्वात् कृतस्यापि नाश्यत्वेन अप्रयोजकत्वान्न कर्त्तव्य मितिपूर्वः पक्षः । तत्र सिद्धान्त माह इस प्रकार ज्ञान की की कर्मनाशकता सिद्ध हो जाने पर अब विचार करते
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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