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________________ ( ५२.२ ) मदम आदि स्वतः होते हैं, अतः यज्ञ आदि की उसमें आवश्यकता नहीं है । सर्वान्नानुमतिश्च प्राणात्ययेतद्दर्शनात् | ३|४|२७| ननु सत्वशोधकत्वेन यज्ञशमदमादेविधानमितिमतं नोपपद्यते । " आहारशुद्धसत्वशुद्धिः” इति श्रुतेस्तद्विरुद्धा सर्वान्न भक्षणानुगतिरपि यतः श्रूयते छंदोगानां - " न हवा एवं सिद्धि किंचनानन्न भवति, तथा वाजसने-यिनां ——न हवा अस्यानन्न जग्धं भवति" इत्यादि । तस्मात् सत्व शुद्धयर्थं यज्ञादेर्न विधानमिति प्राप्ते विषयव्यवस्थामाह - आहार दौर्लभ्येन प्राणात्यय उपस्थिते प्राणधारणस्य ज्ञानांत रंगतमं साधनत्वेनाहारस्य देह पोषकत्वेन • ततो बहिरंगत्वात् तदनुमति क्रियते इत्यर्थः । अत्र प्रमाणमाह - तद्दर्शनादिति “चाक्रायणः किलमर । पद्गत इभ्येन सामि खादितवान् कुल्माषां चखाद्” इत्यादि श्रुति दर्शनादित्यर्थः । अन्तः करण की शुद्धि के साधक रूप से शमदम आदि का विधान है, ये मत ठीक नहीं हैं, क्योंकि - " आहार शुद्धि से सत्व शुद्धि होती है" इस आचार श्रुति से विरुद्ध सर्वान्नभक्षण की अनुमति भी " न ह वा एवं विदि" "तथा " न ह वा अस्यानन्नं" इत्यादि दोग्य और वाजसनेयि श्रुतियों में मिलती है । इससे ज्ञात होता है कि सत्व शुद्धि के लिये यज्ञादि का विधान नहीं है । इस मत पर सूत्रकार व्यवस्था देते - कठिन हो जाये और प्राणान्त कष्ट हो तब प्राण धारण के लिये, ज्ञान के अन्तरंगतम साधन आहार को, देहपोषक बहिरंग साधन के रूप में, ग्रहण करने की अनुमति दी गई है। जैसा कि - " उषस्ति चाक्रायण ऋषि ने आपत्ति आने पर महावत के झूठे उर्द भक्षण क्रिये” इत्यादि श्रुति उपाख्यान से ज्ञात होता है । हैं कि - आहार मिलना यद्यपि ज्ञानसाधनत्वेन सत्वशुद्ध रपेक्षितत्वाज्जाते ज्ञाने तत्साधनपेक्षणा देवं विदीति वचनात् तादृशे सार्वदिक्यपितदनुमतिर्नानुचिता । अपिस्मर्यते इत्यनेनाविदुषोऽप्यनुमतेर्वक्ष्यमाणत्वाच्च । तथाऽप्याचार्येणावस्थाविशेष विषयकत्वमुक्तं यत् तेन ज्ञानिनोऽप्यनापदि विहितत्यागोऽविहित करणं च चित्तमालिन्य . जननेन ज्ञानतिरोधायकमिति श्रुत्यभिमतमिति ज्ञाप्यते । अत श्रीभागवते द्वितीय कंधे "विशुद्ध केवलं ज्ञानं प्रत्यक्सम्यगवस्थितम् सत्यंपूर्णमनाद्यतं निर्गुणं नित्यमद्वयम् । ऋषे विदन्ति मुनयः प्रशान्तात्मेन्द्रियाशयाः प्रदातदेवासत्तकैस्तिरो
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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